मंगलवार, 9 अगस्त 2011

तीन, नौ और तेरह


                                                                                                                     Artist- Lucian Frued

दिन कांच के थे और आवाजें झिलमिलाहट की तरह सुनाई पड़ती थीं . खेल में कोई नियम नहीं था ,कहानी कंही से शुरू होकर कंही भी ख़त्म हो सकती थीं और मुहावरे में पांव उखड जाने का मतलब सिर्फ हारना भर नहीं था .


लड़का - तुने 'हम दिल दे चुके सनम ' देखी है ? 
लड़की - तेरह बार 
लड़का - हा हा हा..... वो इतनी सही फिल्म भी नहीं की तेरह बार झेली जाए 
लड़की - जानती हूँ, पर मेरे साथ अक्सर ऐसा होता है , मतलब की किसी खास अंक पर जाकर मै अटक जाती हूँ और तब बहुत बेतुकी सी बात को भी उस खास अंक तक कई बार दुहरा सकती हूँ मतलब बस ऐंवे ही 
लड़का - जैसे की ? 
लड़की - तीन ,नौ और तेरह 
लड़का - हम्म.....(चुप्पी)  उस दिन मार्च की तेरह तारीख़ थी जब वो मरे और मेरी उम्र भी तेरह साल और उस दिन पता नहीं क्यूँ पर मै बहुत खुश था मतलब मुझे एकदम ठीक ठीक से याद नहीं पर अचानक ही मुझे लग रहा था जैसे मै आज़ाद हो गया हूँ...हो सकता है ये बात न रही हो फिर भी .....
                 लोग आते और हमदर्दी से मेरे सर पर हाथ फेरते ,माँ रोती रही थी और मै किसी बहादुर बच्चे की तरह मुस्कुराता रहा था ,पर मै खुश था इसलिए वो सचमुच का मुस्कुराना था जैसे बाप का मर जाना कोई बड़ी या खास बात न हो .
                                            (चुप्पी) 
लड़की - जानते हो ऐसे ही एक दिन मेरी दीदी भी मर गई थीं मतलब की मरी नहीं थीं, दरअसल उन दिनों उन्हें हर वक्त छत पर जाने का                 कोई बहाना चाहिए होता था ,कभी कपडा सुखाने तो कभी अचार या पापड़ों को धुप दिखाने और छत पर जाकर वो अटक जातीं. 
            उन दिनों उनकी उदासी देखकर लगता मानो वो कभी भी छत से कूद सकती हैं ,और एक दिन वो पंखे से लटकते हुए मिलीं ,उस लड़के के बारे में मुझे कुछ नहीं पता और मम्मी  पापा अलग अलग कमरों में सोने लगे और मै अकेले और उदास रहने लगी मेरे को लगता था की जैसे मै औरों से कुछ अलग हूँ और इस ऐसा सोचने में ही एक मज़ेदार टाइप का  सुख था पर मुझे जल्दी ही समझ आ गया की मेरे आस पास के सब लोगों के पास ऐसे ही कुछ प्राइवेट किस्म के कोई न कोई सुख थे और फिर... 
लड़का - और फिर?
लड़की - और फिर क्या? मै दुबारा से खुश रहने लगी.
                    (लम्बी चुप्पी)
लड़की - तुमने देखा ?
लड़का - नहीं,क्या था?
लड़की - एक लड़का... अरे वो जो जा रहा है , उसने मुझे बहुत छुपे ढंग से आँख के कोनो से देखा (चुप्पी) कभी कभी अचानक से ऐसे लड़के मिल जाते हैं जो बातें करते हुए झेंप से जाते हैं ,अचानक ही बेवजह मुस्कुराने लगते हैं ,आँख मिल जाए तो शरमाकर कंही और देखने लगते हैं, हा हा हा...तब मन करता है उसी वक्त उन्हें चूम लूं 
लड़का - चूमती नहीं ?
लड़की - क्यूंकि जानती हूँ की मेरे चूमते ही वो शेर हो जाएँगे 
                         (चुप्पी)
लड़की - तुने पहली बार किसी लड़की को कब चूमा था?
लड़का - जब मै नौ साल का था .
लड़की - फिर?
लड़का - फिर उसके कुछ ही दिन बाद मै मर गया ,मुझे नहीं लगता की उन्हें मेरे मरने पर बहुत ज्यादा दुःख हुआ होगा बल्कि उस दिन उन्होंने दो पैग ज्यादा ही पी थी दरअसल वो बुधवार का दिन था और हमारे शहर में उस दिन साप्ताहिक बाज़ार होता था और पिताजी के ऑफिस की आधी छुट्टी भी,हफ्ते में इस दिन पीना उनके बरसों का रूटीन था और बाद के दिनों में जब कोई उनसे मेरा ज़िक्र भी करता तो दो चार बार आँखे झपकाकर वो कंही आस पास हवा में खाली सा कुछ ताकने लगते या फिर मुस्कुराकर किसी किताब का ज़िक्र छेड़ देते और कुछ नहीं सूझने पर जेब में हाथ डालकर सर हिलाते हुए मन ही मन कुछ बुदबुदा देते .
                 ये उनका अपना खास स्टाइल था ,लोग अक्सर उनके इस अंदाज़ से इम्प्रेस होकर नकली गंभीरता से उन्हें देखने और सुनने लगते .मतलब इस तरह से उन्होंने मेरे मरने का भी एक उपयोगी इस्तेमाल ढूंढ लिया था.
                                        (चुप्पी)
लड़का - अब चलें , बारिश हो सकती है.
लड़की - नहीं, थोडा रुको.......अच्छा तुम्हे याद है तुमने कल फ़ोन किया था...
 मै उसके साथ थी ,हम अँधेरा होते तक उसकी बालकनी में बैठे रहे फिर हवा चलने लगी और फिर बारिश , मै चाहती थी वो वंही बालकनी में मुझसे प्यार करे हालाँकि मैंने उससे कहा नहीं फिर हम कमरे के भीतर आ गए उसके बिस्तर पर ..... 
           मै बहुत खुश थी और जब तुम्हारा फ़ोन आया तब मै चाहती थी की तुम्हे सब कुछ बताऊँ बिलकुल शुरू से आखिर तक की किस तरह उसने मुझे ....पर तुम्हारा फ़ोन उठाते ही मै उदास हो गई ..
लड़का - हा हा हा......
लड़की - कमीने , अच्छा ठीक है अब चलते हैं 
लड़का - कितनी इन्सेक्योर्ड होती हो तुम अपनी कहानियों में 
लड़की - तुम्हारी तरह हर कहानी में शहीद हो जाने का ढोंग नहीं करती मै, ब्लडी हिप्पोक्रेट .
लड़का - तुम्हारी हर कहानी में तुम्हारे नए झूठ  होते  हैं 
लड़की - और तुम्हारी हर कहानी में तुम्हारे नए सच और झूठमूठ के गिल्ट 
लड़का - अबे एक ही बात है 
लड़की - ओह ..हाँ एक ही बात है .


       दोनों के पास अपने अपने पुराने दिन और दुःख थे ,हर दिन में ऐसा कुछ नहीं घटता था जो उन्हें एक दुसरे से कहना ज़रूरी लगे ,ऐसे में वो झूठी कहानियों के पुल बनाते खुद को निर्दोष बताते हुए सबसे आसान शिकार चुनते जो उनकी कहानियों में बिना किसी विरोध के शामिल हो जाएँ जैसे माँ बाप ,पुराने दोस्त ,प्रेमी प्रेमिकाएँ ,भाई या बहन या सड़क पर चलते हुए अजनबी .उन बेचारों को पता भी नहीं होता था और वे इन कहानियों में शामिल कर लिए जाते और चूँकि दिन कांच के थे, हर आवाज़ अपनी ही आवाज़ की तरह गूंजती थी और हार जाने का मतलब उनके लिए किसी भी मुहावरे से बाहर था.  

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