रविवार, 26 जनवरी 2014

मैं गुमानी रुकुंगा

                                Artist - Rene Magritte


















 

      १.

मैं गुमानी
तू बदग़ुमान
आसमान
पहलवान
बदज़ुबान
बेईमान
बनकर
भी
मैं सिर्फ गुमानी
तू बदग़ुमान
जवान
पकवान
सुन्दर
मुन्दर।

     २.

राजा रानी
प्रजा फ्रजा
अगैरह वगैरह
सब
जाएंगे
जाते हैं
जाना ही पड़ेगा
रुकुंगा कि तरह
कुछ लोग रुक जाएंगे
रुके हैं
रुकते हैं
रुकुंगा।  

दिल्ली


                                                Artist -  Rameshwar Broota














     

          १.

एकबारगी में हुआ
फिर बार बार
सात एक आठ पाँच
बदलते हुए
कपड़ों कि तरह
उतारता
केंचुल
शहर एक ही अटक गया
गया
फिर आ गया
एकबारगी में जाऊँगा
फिर बहुत दिन बाद
आने के लिए।

        २.

कल्पना में झुकती है
कान में
खिड़की में सरकता है
इंडिया गेट फ़िंडिया गेट
मुझसे कहो दिल्ली
धीरे से
ही ही ही ही
जामुन और शहतूत के पेड़
हरी सड़कें
और ढेर सारी लड़कियां
खूबसूरत
ऊबसूरत
और उदासी ऊब पागलपन
मतलब दिल्ली
ही ही ही ही।

        ३.

यहाँ बड़े लोग
इधर छोटे
ये बाकी बचा बीचवालों के लिए
तुम कहाँ
कोहरा है वहाँ
जहाँ हरी बड़ी पीली मकानें
बंगला फंगला
कहाँ
उधर जाना है
बगल से गुजरोगे
लालची
सचमुच
पता नहीं।  

जैसी चालाकी जिसमे कविता वविता

                                                           Artist - Edward Hopper















क्या हुआ ?
कैसे हो ?
पूछते हुए लोग आएँ
मैं झल्लाकर कहूँ
कि अकेला छोड़ दो
कि तरह का अकेलापन
जैसी चालाकी
जिसमे कविता वविता

कविता मतलब कल्पना
में लोग आएँ
पूछें
कुछ कहूँ
या मुस्कुराता रहूँ। 

शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

और जनवरी कि धूप

                                                     Artist - Raj Kumar Sahni


















आओ
जाओ
उतरो
कहाँ
गड्ढे में
चड्डी में
झरता
झरना
दो
एकम
दो
दो दूनी चार
कि तरह बहुत बीमार
कि तरह कि ख़ामोशी
जैसे ट्रेन कि धड़धड़ाहट
हड़बड़ाहट बड़बड़ाहट
हा हा हा जैसी हंसी
और म्याऊं म्याऊं करती बिल्ली
कमरे मे झक्क सफ़ेद
(पडोसी कि पालतू)
फालतू कुछ नहीं होता
कि तरह
आस पड़ोस लोग सड़कें बाज़ार पार्क बच्चे गेंद कुत्ता बेंच घास
और जनवरी कि धूप।