शुक्रवार, 3 जून 2011

एस्थेटिक सेन्स


                                                                     Artist - Mithu Sen
                                                                                                       


















सर्दियों के बीत जाने पर

मै सर्दी के दिनों को याद करता हूँ

जब होली गुज़र जाती है

तो कहता हूँ -

"होली गुज़र गई "

जब मै लिखता हूँ सेमल

तो सेमल की नंगी शाखों पर

कव्वे पंख फडफडा रहे होते हैं

लगता है मुझमे एस्थेटिक सेन्स की कमी है .

मै कविता की बात नहीं कर रहा


                                     Artist- Salvador Dali
                                                                                                       




















                  १.

जब मै अकेला होता हूँ
तो ऊबता हूँ
और लोगों के साथ होने पर
अकेले होने की कामना करता हूँ,
जब मै कहता हूँ की वो ढोंग था,
तो उसका मतलब सचमुच का ढोंग होता है
और जब मै ये कह रहा होता हूँ
तो ये भी एक ढोंग होता है.
          २.

मै देर तक सोने के लिए शर्मिदा हूँ
मै धूप में खड़ा उदास हूँ
मै इस उदासी को देखकर
 मुस्कुराता हूँ
और दूसरे दिन फिर शर्मिंदा होता हूँ

           ३.

मै कविता की बात नहीं कर रहा हूँ
और पुराने दोस्तों की तो मुझे याद भी नहीं
अब तो उनके चेहरे भी भूलता जा रहा हूँ
और आखिरी कविता मैंने कौन सी पढ़ी थी ?
नहीं जी
मै कविता की बात नहीं कर रहा
और न ही प्रेम की .

खुश चिड़िया दिन (happy bird-day)


मैंने बहुत सोचा
की तुम्हे क्या दूँ
थे कुछ पैसे जेब में ,जैसे नहीं थे
कुछ इच्छाएँ थी मन में
की बरसों बरस खर्चता रहूँ
फिर सोचा कुछ दूँ
जो बचा रहे बिलकुल आखिर तक
और भीतर से कोड़ लाया ये शब्द -
बादल में बहुत  सारा धुंध तैरता रहता है
जैसे रिश्तों में पीड़ा
ढेर सारे भूले किस्से ,बीत गए समय में
घर के पुराने कोने
मेरे और तुम्हारे बेतुके झगडे
फिर बंद घडी की सुइयां
(वही नीली डायल वाली घडी,
जो बाबूजी के हाथ से उतरने के बाद हमारा खिलौना था)
सभी आज ही के दिन समेट लो
आगे भी तो कितने सारे बरस हैं
उन्हें भी तो जीना है.
HAPPY BIRTHDAY PINTU

चिड़ियों की भाषा


मेरे क्लास में है
दोपहर की एक भरी-पूरी नींद
मेरे क्लास में है
एक पपीते का पेड़
जिसके कच्चे - और पके दोनों ही फल
खूब मिठाते हैं
मेरे क्लास में है
एक, दो पंक्तियों का गीत
जिसे सुबह से शाम तक
हम सभी गुनगुनाते रहते हैं
मेरे क्लास में है 
खूब चमकती हुई आँखे
ढेर सारी हंसी का शोर
कांच के टुकड़ों सा चमकता धूप
खूब मीठा धूप
जो हमारे क्लास के बाहर वाली लान पर
सबसे ज्यादा ठहरता है .

मेरे क्लास के बच्चे(बच्चे नहीं हैं वो )
यानि की मेरे दोस्त
इंसानों की नहीं
बल्कि चिड़ियों की भाषा में बात करते हैं .

मेरे क्लास के दोस्त
पता नहीं 'उदासी ' शब्द का अर्थ
जानते भी हैं या नहीं
हालाँकि ये शब्द मेरे लिए तो बिछौना है
पर उनके बैग के किसी खाने में
मुझे इस रंग की कोई डिब्बी नहीं मिली
(जाने कंहा छुपाकर रखते हैं साले .......)

खैर,
मेरे क्लास के सारे बच्चे (सॉरी, बच्चे नहीं हैं वो)
चिड़ियों की भाषा में बात करते हैं
बस कभी-कभी ही ऐसा होता है
जब मुझे उनकी भाषा समझ में नहीं आती
क्या पता तब वो इंसानी भाषा का इस्तेमाल करते हों.

सूरजमुखी लिखता हूँ

                                                                    Artist - Van Gogh


















मै कुछ नहीं सोचते हुए 
किसी हरे जंगल को घोंटकर 
पी जाना चाहता हूँ  
जैसे वान गाग कभी-कभी 
ताज़ा घोलकर रखे हुए रंग गटक जाता था

समूचे आसमान को निचोड़कर 
इकठ्ठा हुए नीले रंग से 
कुल्ला, शौच, और नहाने जैसा
ज़रूरी 
(या गैरज़रूरी)
काम निपटाना चाहता हूँ 
की सुथरा लगूं

और चूँकि कहने को मेरे पास कुछ भी नहीं है 
इसी मारे अपनी सभी चुप्पियों को चुनकर 
एक चीख की तरह कुछ बुनता हूँ 
और उसे कविता कहते हुए 
सूरजमुखी लिखता हूँ .

एक और हरा, मुलायम, उल-जुलूल सपना

                                   Artist - Myself























क्या मुझे इस बात की सफाई देनी होगी
की उस पौधे को 
मैंने बिना किसी  फल की कामना किये बोया था.

ये भी हो सकता है की 
अपने नाख़ून कुतरते हुए 
उनके बीच जमा हुआ मैल भी मैंने चाट लिया हो 
और अब मेरे भीतर 
एक सूखी  हुई नदी है 
जिसकी रेत पर
बकरियों की लेडियां बिखरी पड़ी हैं
और  मै सिर्फ 
नकली शब्दों का धंधा करता हुआ 
एक नामर्द कवि हूँ , जिसका कोई पाठक न हो. 

या फिर शायद 
कंही कुछ छुट गया है
कुछ रह गया है
जैसे एक टूटा हुआ पुल 
एक बिगड़ी हुई घडी 
और भीतर से भरा हुआ 
खाली बदबूदार समय
जिसमे अपना ही चेहरा, पहचान न पड़ता हो
(और ये लिखते हुए मै थोड़ी झिझक महसूसता हूँ)
की मै अपने ही बुने हुए 
उल -जुलूल सपनो का 
एक हारा   हुआ नायक हूँ 
 मेरी आँखों का पानी 
कुछ नहीं सिर्फ 
बासी ,बची-खुची नींद के दो चहबच्चे हैं 
और वो पौधा 
इन्ही चह्बच्चो  के पानी से सींचा हुआ 
एक और हरा ,मुलायम ,उल-जुलूल सपना है 
जिसे सचमुच , मैंने बिना किसी कामना के बोया था.

उदासी इतनी भी बुरी बात नहीं


                                                           Artist - Myself



















देखो
मै तुम्हे उमगते हुए पत्तों का 
बहुत कच्चा कोमलपना देता हूँ 
और फिर 
अपनी उम्र पूरी कर लेने पर 
उनका झरना

देखो तो सही 
की लोग मुस्कुराते हुए 
कितने अच्छे लगते हैं 
और सच कहूँ 
तो उदासी इतनी भी बुरी बात नहीं.