बुधवार, 11 जनवरी 2012

बाबा


                         Baba Nagarjun













अगर मै सिर्फ लिखने के लिए लिखता हूँ
तो झूठ लिखता हूँ
जबकि मै सब कुछ सचमुच का चाहता हूँ
प्यार दोस्ती और दुनिया
सब कुछ सचमुच का.

कुछ बातें हैं
जो मेरी समझ से बाहर हैं
और मै उन्हें इसी तरह समझना चाहता हूँ
जैसे वो नहीं समझ में आतीं
फिर भी
अगर पसीने की भाषा
और भूख का अर्थ मेरी समझ से बाहर हैं
तो ये मेरी समझ का दोगलापन है
और आजकल इसी से सारा शहर झिलमिलाता है.

मै स्वामीनाथन के पहाड़ पर बैठी
चिड़िया हो जाना चाहता हूँ
वान गॉग के सूरजमुखी का गमला हो जाना चाहता हूँ
बाबा मै अपने चमकीले सपनों
और चाशनी भरी नींद से ऊब चुका हूँ
बाबा मुझे अपनी कविताओं का सत् दो
मै तुम्हारी कविता हो जाना चाहता हूँ
एक सचमुच की कविता.

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