Artist- Jean-Michel Basquiat
मौसम ही कुछ ऐसा
था की धूप भीतर की झाडियों में उलझ जाता था और अपने ही चेहरे से पसीने की तरह कई
और चेहरे टपकते रहते थे, फिर भी जब - जब कोई नई कहानी कहना होता, तो हम बार-बार
लौटकर वंही जाते थे जंहा एक शेर था. एक बकरी थी, और एक घास का गट्ठर पिंजरे की तरह
खुला हुआ और एक शिकारी पेड़ के ऊपर पत्तों की ओट में छिपा हुआ.
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फिर?
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फिर? हाँ ..फिर उस लड़की ने पिछली बार की तरह ही फिर आखिरी
बार एक कसम खाई और उस कसम का मतलब कुछ ये निकलता था की...की ..
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मुझे मतलब नहीं जानना , सिर्फ कहानी का अंत जानना है.
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अबे कहानी क्या कोई कुतिया है की उसके पैदा होने और मरने का
तुझे हिसाब दूँ, अच्छा ये बता रात के साथ कौन सम्भोग करता है ? सूरज की चाँद?
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तुम शुरू से जानते थे की कहानी में वो लड़का उसके साथ धोखा
करेगा ..
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मैंने ‘धोखा’ नहीं कहा.
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हा हा हा .... वैसे चाँद के जेंडर पर बहस हो सकती है.
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तू बेवजह मुझ पर शक कर रहा है , कहानी में मुझे उस लड़के से
कोई हमदर्दी नहीं और कहानी के बाहर चारों तरफ वैसे ही लड़के हैं. जो एक दिन लड़की को
छोडकर चले जाते हैं.
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और तू चाहता है की वो लड़की हमेशा कहानी के भीतर ही रहे ..
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मतलब ?
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तुझे याद है उस दिन बाहर बारिश हो रही थी और तू बाथरूम से
होकर आया था ,तुने अचानक ही गुस्से में टी.वी. बंद किया था और फिर हमने ला
स्त्रादा देखी थी .
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मुझे याद नहीं
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तुझे ला स्त्रादा याद नहीं?
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मुझे वो दिन याद नहीं. और मै हर दुसरे तीसरे दिन में बाथरूम
जाता हूँ मुट्ठ मारने तो आखिर इससे क्या
साबित होता है??
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तुझे वो धुन याद है, वो गीत , वो पागल सी लगती औरत..जो
हमेशा के लिए उस कहानी के भीतर ही रह गई .
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देख बे ,तुझे गुड़ की तरह बोलने की ज़रूरत नहीं अगर बात गू ही
है तो हग दे ,मै भी सुनना चाहता हूँ.
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तू रात की कल्पना
एक औरत के रूप में करता है ?
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मै रात को कुतिया भी लिख सकता हूँ.
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और कुत्ता भी??
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रात के गर्भ में...
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बकवास , मै चाँद को मामा नहीं बुलाऊंगा...
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हा हा .. घटिया आदमी..
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तेरी कहानी के बाहर हर आदमी घटिया है हर आदमी वो लड़का है जो
कभी भी उस लड़की को छोडकर जा सकता है,फिर तू कहानी में उसे एक बहादुर लड़की कि तरह
लिखेगा कुछ इस तरह कि जैसे वो इन सब से उबर आएगी क्यूंकि उसे सहना आता है ... तू
लिखेगा कि....
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तू अपनी माँ चुदा...साले..
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हा हा हा.... और तेरे झंडे के नीचे हर किसी को माफ़ी मिल
सकती है ,क्यूंकि तेरा सारा अफ़सोस वो लड़की ढोती रहेगी और बाकि के वो सारे लोग भी
जो कहानी के भीतर खुद अपना ही भूत बनकर घुमते रहते हैं , सारी जिंदगी ऐसे ही ....तेरे
कहानियों के भीतर तेरी कविताओं में, तेरे लिजलिजे शब्दों को ओढ़े हुए और कृतार्थ
होते हुए, सचमुच कमाल की कहानियां लिखता है मेरे शेर ...
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मेरा अफ़सोस??
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और तेरा बदला भी, की हर कहानी में असली मुजरिम हमेशा फरार
रहेगा ,उसकी भूमिका असंदिग्ध और संक्षिप्त है. और नायक अदृश्य ,क्यूंकि वही तो
कहानीकार है...
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अबे चूतिये ,तुझे क्या लगता है की तू अलग है..... नहीं. तू
सिर्फ मेरे शब्दों के बीच पड़ा हुआ एक गाँठ है , सुखी हुई स्याही का एक धब्बा ,मैदान
की धूप में सूखता हुआ टट्टी जिसे मैदान की मिटटी में मिल जाना है बाद में किसी को
पता भी नहीं चलेगा की कभी तू भी महका था और तेरे बगल से गुजरते हुए कभी किसी ने अपनी नाक बंद की थी , हा हा ..
कभी किसी को नहीं....पता चलेगा ,क्यूंकि सब ढोंग करते हैं ,सुना तुने सब तेरी – मेरी तरह ढोंग
करते हैं.
कंही कोई ढोंग
नहीं था सिर्फ कहानियां थीं जिसमे एक शेर बकरी का बलात्कार करता है ,बकरी घास का
पूरा गट्ठर भकोसते हुए मिमियाती है और शिकारी अपने हस्तमैथुन की इस पूरी क्रिया को
गांव में रस ले लेकर सुनाता हुआ गीत गाता है. और इसे किसी तीसरे
ढंग में कहने के लिए मुझे अपनी जुबान कटवानी होगी.