शनिवार, 30 नवंबर 2013

और बाकी सब तो ठिक ठाक है


                                                 Screen shot - Melancholia












और बाकी सब तो  ठिक  ठाक  है
ऐसा मैं कहता
पर नहीं कहूँगा 
की बस एक कविता कि कमी है 
रहती है 
होती है 

बुलाता हूँ 
आती है 
चली जाती है 

फिर  रुकने के लिए कहता हूँ 
फिर जाने के लिए कहता हूँ 

जाती है 
और नहीं आती है 

फिर आएगी 
जब नहीं बुलाऊंगा
जैसे बिना बुलाए ही
दुःख चला आता है

आती है
आएगी
आ रही होगी
पर रुकेगी नहीं  

बड़ी हरामन  होती हैं ये कविताएं 
खुद नहीं रहतीं 
बस इनकी कमी रहती है 

बाकी तो सब ठिक ही ठाक है। 






बुधवार, 27 नवंबर 2013

मैं गधा हूँ

                        Artist - Rohit Dalai

         १. 
'ये तो हद्द है यार'
गधा अपनी दुलत्ती झाड़ते हुए लगभग इर्रिटेट सा होकर कहता है 
सुनकर घास चरता हुआ मालिक सकपकाकर गधे कि तरफ देखता है 
मालिक कि सकपकाहट देखकर गधे को हँसी आ जाती है 
गधे कि बत्तीसी देखकर मालिक को बड़ा सुकून सा पहुँचता है और वो एक लम्बी सी साँस छोड़कर फिर इत्मीनान से घास चरने लगता है ये सोचते हुए 
' सचमुच ही हद्द है यार' . 

         २. 
मालिक कभी कभी ये सोचकर बहुत परेशान होता था 
कि आखिर उसका गधा गधा क्यूँ है 
वो कुत्ता भी तो हो सकता था या खरगोश या बैल या हाथी बकरी या सूअर होने से भी चलता 
वो इनमे से कुछ भी हो सकता था फिर उसने गधा ही क्यूँ चुना 
पर फिर वो ये सोचकर तसल्ली कर लेता था कि आखिर वह मालिक क्यूँ                                                          है ये भी तो उसे नहीं पता
इसलिए आखिर इस बात से भी भला क्या फर्क पड़ता है.

         ३.
गधा सोचने में बिलकुल भी समय  बर्बाद नहीं करता था
वो बस कभी कभी कमोड पर बैठकर कवितायेँ लिखता था
उसके ख़याल में यही इकलौता ऐसा काम था जिसमे काम जैसा कोई काम नहीं था
बस कभी कभार उसे मक्खियों से बचने के लिए मजबूरन अपनी दुलत्ती उठानी होती थी.

         ४.
मालिक को कभी कभार ये सोचकर बड़ी कोफ़्त होती थी
कि मैं गधा क्यूँ हूँ

         ५.
गधे को इस बात से बड़ी ख़ुशी थी
कि मैं गधा हूँ.