गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

बुकोवस्की के लिए

























मेरे दिमाग में
शेर,सियार,बन्दर,सांप,बिच्छू,गिद्ध,कुत्ता,गिरगिट,सूअर 
छिपकली और छिपकली और चींटियाँ बहुत सारी चींटियाँ

मेरे दिल में
एक चिड़िया, नीले पंखों वाली चिड़िया

चौबीसों घंटे लड़ते हैं ये आपस में
दिल और दिमाग

एक बिचारी चिड़िया का मुकाबला
इतने सारे हरामियों के साथ

और हैरानी ये
कि अक्सर ही जीतती चिड़िया है

किसी दिन दिल से बाहर निकाल
इस चिड़िया का गला मुरकेटना है मुझे.

इसे मेरा रिज़्यूम समझें

                                     Artist - Rajkumar Sahni





















समय में कोई खराबी नहीं है  
और दुनिया के सारे पेंच कसे हुए हैं
जबकि मै कोई इंजीनियर होने कि बजाय
एक तीस साल का शराबी और गंजेड़ी हूँ
जिसके पास कुल जमा
डेढ़ दो सौ अधूरी कवितायेँ
चौबीस पच्चीस अनलिखी कहानियां
और अपनी पूरी ढीठता के साथ
बहुत सारी विनम्रता विरासत में मिली हुई
और तीन रंडियों के साथ सोने का अनुभव है
हालांकि मेरे मित्र ये भी कहते हैं
कि मुझमे एक अच्छा फिल्ममेकर और चित्रकार होने के
सारे गुण मौजूद हैं
(और उनकी इस बात पर मै यकीन करता हूँ)
आप चाहें तो इसे कविता कि तरह भी पढ़ सकते हैं
पर इतने से अगर कहीं काम मिलता हो
तो इसे मेरा रिज़्यूम समझें.

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

दीवार पर सोयी छिपकली

                       Artist - Rajkumar Sahni






















मै इतना खाली था
कि अचानक से भर गया
एक बड़े घास के मैदान से
उसमे घास चरती गाएँ थीं
खेलते हुए हुड़दंगी बच्चे थे
मैदान को घेरे हुए, हरहराते पेड़ थे
नीली पारदर्शी हवा
और एक लड़की
जो दिखती हुई सी ओझल थी
मै उसका चेहरा
कुँए कि तरह झाँकना चाहता था
इस कोशिश में
मैंने मैदान में कूदना चाहा
और झर गया.

फिर से एक कमरा था   
एक बिस्तर
और मेरे साथ
दीवार पर सोयी छिपकली. 

सोमवार, 1 अप्रैल 2013

नीम का पेड़ मेरा घर है, जिससे दिन भर पत्ते झरते हैं



                          Artist - Rohit Dalai






















एक छोटा सा दुःख
आंसू का एक कतरा
पीपल का पीला पत्ता
आकांक्षा का नीला आकाश.

देर से घर लौटे
थोड़े नशे में पिता
और उनका लाड़
फूली सिंकी हुई रोटियां
गोरसी का ताप
ब्याही बड़ी दीदी कि बात
घर का सबसे प्यारा कोना
मन का.

भाई से झगड़े
कंचे के खेल में
कुहनी और घुटने छीले.

चिमनी कि रौशनी
सफ़ेद रजाई
सफ़ेद दिन
गाँव से बाहर
घर के भीतर
मन के भीतर.

दिन कि थकान
शहर कि थकान
मन कि थकान.

एक छोटा सा सुख
छोटी सी मुस्कान
थोड़े से गेंहू कि चमक
घास का एक तिनका
किसी लड़की के लिए
पहली बार उमड़ी
प्यारी सी
चाहना
थाहना
मन को.

पाव भर दूध का लोटा
भूत का धोखा
आंट पर
रात में
खाट पर
मन में
दिन आकाश हो गया
रात पहाड़
सूरज गोरसी  
और नीम का पेड़ घर
जिससे
दिन भर पत्ते झरते हैं.

सबसे सुनसान दोपहर में
सबसे सुनसान रेलवे स्टेशन
मेरे गाँव का.

सबसे ज़्यादा
परसा के पेड़
महुवा के फूल
बटुरा, तीवरा, चना वाला खेत
कम हो गया
ग़म हो गया
गाँव जाना भी कम हो गया.

पर भी गाँव
मतलब छाँव
अगर में
मगर में  
मन में
शहर में.

महत्वाकांक्षा का पीला पत्ता
नशे में शहर
फूली सिंकी हुई
शहर कि सड़कें.

घास का एक तिनका
झूठ कि बड़ी सी नाव
चाहना
वक्षों से जाँघों तक का सफर
नज़र
मगर
भूख
भूत
चारों तरफ भूत
न धोखा
न झूठ
सिर्फ भूत
आईने में भी भूत.

नीम का पेड़ मेरा घर है
जिससे दिन भर पत्ते झरते हैं
और सड़क किनारे रोज़
कूड़े का ढेर इकठ्ठा हो जाता है.