शनिवार, 18 अगस्त 2012

दुनिया रोज़ कपड़े बदलती है

                                Artist - Rene Magritte 






















हर इस्तेमाल हुए चेहरे के लिए
मै अलग अलग शब्द ढूंढता हूँ
कि जैसे आखिरी बार मैंने कब झूठ बोला था
और पिताजी को मुझ पर इतना गर्व था
कि वो लगभग झिझकते हुए से
मुझसे पानी का गिलास मांगते थे.

बचपन के किसी शाम में
राख से बर्तन घिसती मेरी अम्मा ने मुझे बताया था
कि दुःख, आग से बर्तन पर लगी कालिख है 
इसे घिस घासकर चमकाना पड़ता है
और उसी शाम गांव में पहला रंगीन टीवी आया था.

जबकि बचपन के रोने में
सिर्फ एक चेहरा भीगता था
और अपने बड़े होते जाने में
ढेर सारी लालसाओं का हाथ था
इस तरह सारे चेहरे लिसलिसे थे.

फिर भी नहाते वक्त मै आज भी गाने गाता हूँ
और धूप देखकर खुश हो जाता हूँ
कि यही वो नया चेहरा है
जो कभी पुराना नहीं पड़ता
जबकि दुनिया रोज़ कपड़े बदलती है.

बुधवार, 15 अगस्त 2012

इसी तरह शुरू हुई थी ये दुनिया

                               Artist - Rohit Dalai





















एक लड़का
बेशर्मों कि तरह रोता जाता था
और उसके बगल से गुज़रती औरत
अपने मरे हुए मर्द को कोसते हुए
सूखी नदी हुई जाती थी  
जबकि वो सावन का महीना था
और अभी बहुत से पिल्ले
अपनी आमद कि प्रतीक्षा में थे.

दरअसल
इसी तरह शुरू हुई थी ये दुनिया
कि अपना चेहरा हमेशा गोरा रहे
और इसके लिए मै अपनी टट्टी खाने को तैयार हूँ
कहते हुए टीवी पर लोग मुस्कुराते थे
और कहते थे कि यही हमारा पेशा है
उन्हें ऐसा कहता सुनकर ही
मैंने हंसना सिखा था
रोना तो जनम से ही लग गया था
इस तरह उदासी ने जन्म लिया.

जबकि सारे चुटकुले बासी पड़ गए थे
फिर भी लोग हंसना चाहते थे इसीलिए
कभी कोई अनशन पर बैठ जाता था और कोई
किसी लड़की को सौ लोगों से
सड़क पर बलात्कार करवाता था
कि मनोरंजन ही हमारे समय का इकलौता सच था
और नए चुटकुले गढ़ने को
हमारे पास बहुत उपजाऊ ज़मीनें थीं

ऐसे समय में भी
वो लड़का रोता जाता था
और अपने पहले हस्तमैथुन के अनुभव को
किसी ऐतिहासिक घटना कि तरह याद करते हुए
मुस्कुराता, हँसता जाता था
और उसके हँसने और रोने के
बिलकुल बीच में
एक औरत थी
जो अपने मरे हुए मर्द को याद करते हुए
हरहराती नदी हुई जाती थी.