लगातार बोलते रहने से थक जाने के बाद
बहुत घूम लिए की तरह घर लौटता हूँ
एक-एक कर अपनी नाकामियां गिनता हूँ
और खुश होते हुए
खिड़की के बाहर दीखते स्विमिंग पूल में
चार गोते लगाकर
मर जाता हूँ .
मुझे बहुत बार डूबकर मर जाने के सपने आये हैं
आते रहते हैं
जीते जी मर जाने की कल्पना में
मैं एक आत्ममुग्ध कसाई हूँ
तुम इतनी हसीन
“आज तुम्हारे टट्टी का रंग क्या था”
वो पूछकर हँसता है
“कितना आसान है सब”
कहकर सुला मटकती हुई
बड़ी अदा से खिड़की के बाहर उतर जाती है
(मैं एक बार फिर से बताता हूँ की “सुला” मेरी बिल्ली का नाम है)
मैं फ्रिज खोलकर फिर बंद कर देता हूँ
दीवारों को थपथपाकर चुप रहने को कहता हूँ
“एक दिन और दोपहर की बात हो
तो परदे मूंदकर आराम हो ले
पर ये शामें रोज़ आती है”
मैं खिड़की के बाहर स्विमिंग पूल में डूबकर मरने से पहले
बेचैनी से खिड़की के कान में कहता हूँ
“तुम्हे नए चेहरे की ज़रुरत है”
“- कल रविवार है
पक्का डॉक्टर के पास जाऊंगा
तीन – चार घंटे तो सिर्फ अखबार पढ़कर ही काटे जा सकते हैं
मेरी आँखों में खुजली है
बैक्टीरिया इन्फेक्सन.”
- कहकर
मैं किसी छिपे हुए गायब चीज़ के पीछे छुप जाता हूँ
“कितने खूबसूरत हो तुम”
फुसफुसाती हुई हवा
कूदकर मेरे चेहरे से होती हुई
कमरे में बिखर जाती है
मैं फेफड़े खोलकर सांस लेता हूँ
कभी कभी शामें
ऐसे भी आती हैं.
ऐसे भी आती हैं.