शनिवार, 21 दिसंबर 2013

आदमी एक दो तीन


                                     Artist - Ram Dongre





















एक
उस आदमी के पेट में
मछलियाँ तैरती थीं
और दिल में
गौरैय्या चिड़ियों का झुण्ड
और दिमाग़ में
सिर्फ ज़हरीले साँपों का गुच्छा
भला कब तक जीता ऐसे
मर गया बेचारा
या मार दिया गया हो
पता नहीं
सम्भावना तो आत्महत्या जैसी भी है.

दो
छोटे शहर या शायद किसी गांव से आया आदमी था
बड़े शहर में आकर
और छोटा हो गया आदमी
इतना छोटा
कि चींटियों ने
शक्कर के दाने कि तरह कुतरकर चट्ट कर लिया।

तीन
आदमियों जैसी कोई आदमियत न थी उसमे
इस तरह का आदमी
कि सारे आदमीयों की राय में
अच्छा आदमी
इतना
कि सब कहते
अच्छा आदमी है
इसे मर जाना चाहिए
वरना मार दिया जाएगा
ऐसा आदमी।

गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

हर कविता पहली होती है जैसे आखिरी होती है




            Egon Schiele  Photograph - Johannes Fischer






















मै खिडकी के बाहर की तरफ देखता हुआ बैठा था
(बहुत देर से)
और खिडकी मेरे भीतर की तरफ झांकती हुई
(बहुत देर तक)
सिर्फ खिडकी ही नहीं बल्कि उसके साथ
बाहर खड़ा मुनगे का पेड
और उस पर बैठी एकमात्र चिड़िया
और बूँद बूँद टीकलियों जैसे उसके अनगिनत पत्ते
देर से
देर तक  
मुझे घूरते
उगते झरते मरते   

ये क्या बकचोदी है
मै सोचता हूँ
और खिडकी के बाहर कूद जाना चाहता हूँ
(हमेशा कि तरह)
और इसके पहले ही खिडकी मेरे भीतर उतर आती है
(पहली बार)

अब तो हद हो गई

कहकर मै खिडकी पर झल्लाता हूँ

बहनचोद बाहर निकल जा वरना हमेशा के लिए बंद कर दूँगा

और खिडकी
और खिडकी के बाहर का पेड़
और चिड़िया
और मकान
और मकानों के बीच से थोडा बहुत जितना भी दिखता आसमान
मतलब की खिडकी से बाहर का दिखता पूरा दृश्य ही
एक साथ मिलकर मुझे
माँ बहन चाची भाभी सब की गालियाँ बकते हैं
और मै चुप्प
(एकदम चुप्प)

फिर खिडकी समझदारी दिखाते हुए कहती है

देख बे हरामी
तुने मेरे बाहर इन सब को रोज़ देखते हुए
झूठी बकवास कहानियाँ और घटिया कवितायेँ गढ़ी हैं
इस तरह से देखा जाए तो तुझ पर हमारा क़र्ज़ है
अब आज तू हमें कुछ नया सा सुना
और अपना क़र्ज़ उतार
तुझे क्या लगता है हम बोर नहीं होते

इतना कहकर खिडकी ने मेरे भीतर अपने दोनों पल्ले खडकाए

चलो ठीक है
मैंने सोचा
मेरे पास एक और रोल किया हुआ ज्वाइंट भी है
और बहुत सारा वक्त भी
भला मुझे कौन सा कुआं खोदने जाना है
मै तो इस समय के सुविधाओं की पैदाइश हूँ

अच्छा ठीक है
तो बताओ क्या सुनना चाहते हो
और किस बारे में

मै अपने भीतर झाँकते हुए
खिडकी और खिडकी के बाहर दीखते दृश्य से पूछता हूँ

जो कुछ भी तुम्हारे सड़े दिमाग से निकल आए झेल लेंगे

कहकर खिडकी और दृश्य एक साथ मुस्कुराए

धुएँ और अपमान से मेरी आँखों में आंसू और खांसी दोनों निकल आया

कुछ भी क्या

मैने गुस्से और गांजे के धुएँ को एक साथ निगलते हुए पुछा

दोपहर में क्या था

ये कैसा सवाल हुआ

अबे गधे सवाल नहीं टॉपिक दिया है तुझे
चल बकवास को कम रखते हुए दोपहर की कहानी सुना
जिससे आज कि ये दोपहर किसी तरह कट जाए
ये साली दुपहरें ही हैं जो ज़्यादा हरामन होती हैं
आसानी से नहीं कटतीं

ठीक है तो सुनो
एक कमरा था
एक गमला
एक खिडकी
एक आदमी
एक...

बोर....बहुत क्लीशेड है...

पहले सुन तो लो..

बहुत बार सुना है यार...

दृश्य ने खिडकी को मेरी आँखों के भीतर ठेलते हुए कहा
जिस पर चिड़िया मेरी पुतलियों पर चोंच मारते हुए ठहाके लगा रही थी
(कुतिया)

अच्छा ठीक है
फिर से बताऊँ

बताओ की दोपहर में क्या था

एक पीपल
एक बन्दर
एक मदारी
मदारी नचाता था
बन्दर नाचता था
और पीपल से पत्ते झरते थे
अब बन्दर मरने का नाटक करता है
बन्दर का ये नाटक देखने के लिए कोई नहीं है
सिर्फ मदारी है
मदारी उबता है
मदारी कि ऊब देखने के लिए कोई नहीं है
सिर्फ बन्दर है
बन्दर सचमुच में मर जाना चाहता था
मदारी सचमुच में बन्दर को मार देना चाहता था
मदारी गुस्से ऊब और उलझन में अपनी डमरू तोड़ देता है
अब बन्दर कहीं भी जा सकता था
सो वो चला जाता है

बस इतना ही

कहानी में बेफिजूल की डिटेलिंग से मुझे चिढ मचती है
या कह लो खुद कहते हुए भी मै बोर हो जाता हूँ
(बोर हो जाता हूँ)

मदारी बेवकूफ था उसे अपना डमरू नहीं तोडना चाहिए था

दरअसल बन्दर बेवकूफ था उसे लगता था कि मदारी को अपने डमरू से प्यार है

मदारी को बन्दर से प्यार तो रहा ही होगा

बन्दर को डमरू कि आवाज़ अच्छी लगती थी

फिर मदारी का क्या हुआ

क्या बन्दर जंगल में चला गया

ये दोपहर की कहानी है

नहीं ये उस मदारी की कहानी है जिसे उस दोपहर के बाद किसी ने फिर कभी नहीं देखा

बकवास

इस तरह तो ये दोपहर कभी नहीं कटेगी

पूरा दृश्य आपस में एक दूसरे से झगड रहे थे
उन्हें चुप कराने के लिए मुझे एक दूसरी कहानी कहनी थी
(हर कहानी दूसरे में खुलती तीसरे से गुज़रती चौथे में
पलती पांचवे में बढती छठे में मरती सातवें जन्मती इस तरह
हफ्ता पूरा होता मैं चेन्नई एक्सप्रेस होती)

अच्छा तो ये सुनो
एक दोपहर में
एक कमरा है
उसमे एक आदमी है
और आदमियों की तरह ही उसके
दो पैर
दो हाथ
एक दिल
दो फेफड़े हैं
बस चेहरा नहीं है
इसलिए आँख नाक कान और मुह जैसी कोई चीज़ भी नहीं है
मतलब की बिना चेहरे का एक स्वस्थ हट्टा-कट्टा आदमी
वो कभी नहीं ऊबता इसलिए उसे सिगरेट की भी ज़रूरत नहीं होती
और अगर होती भी हो तो पीएगा कैसे
हा हा ...
(सॉरी चुतियाप भरा जोक हो गया)
खैर तो  उससे मै सिर्फ एक बार मिला हूँ
उसी एक दोपहर में जिसके बाद से मेरी दुपहरें थोड़ी कम हो गईं
इसलिए ऊब भी
हालांकि मै सचमुच ही ये नहीं बता पाउँगा की वो खाता कैसे होगा
और अगर खाता नहीं तो जीता और हगता कैसे होगा
वो देख सकता है ये मै गारंटी के साथ कह सकता हूँ
पर कैसे ये नहीं
हालांकि...

आज बारिश होने के आसार हैं

पेड़ ने ऊबकर जम्हाई लेते हुए कहा

उसके जम्हाई लेने से बहुत सारे पत्ते एक साथ झरे
पत्तों के झरने को आज से पहले तक हमेशा
मैंने कविता में किसी जादू की तरह से देखा और लिखा था
पर अभी सिर्फ इस बात से मुझे चिढ ही मची
आखिर इतने इंटेंस कहानी के बीच कोई ऊब कैसे सकता है
(साले सब हरामी)

तुम कोई असली कहानी नहीं सुना सकते

क्या ये दिमागी चोद मचाना ज़रुरी है

और वैसे भी इसमें कुछ भी नया नहीं

सब सुनी हुई बकवास है

चोर कंहीं के...

दृश्य में दृश्यमान
सब एक साथ मुझ पर भड़क उट्ठे
और मुझे चोर कहने वाली वो चिड़िया थी
जिसे आज तक अपनी कविताओं में मैंने मनुष्यता
और मासूमियत के प्रतीक रूप में चित्रित किया था
जी में तो आया की अभी गला मुरकेट दूँ कुतिया का
पर वो मेरे भीतर बैठी थी
और बहरहाल तो ये असंभव था

अच्छा ठीक है ये सुनो..
एक लड़की थी
बहुत बेवकूफ
वो उन लड़कों के बारे में सोचकर उदास होती थी जिन्होंने उसे कभी प्यार नहीं किया

इतना बोलकर मै चुप हो गया

फिर आगे

चिड़िया ने बड़ी उत्सुकता से पुछा

उसकी इतनी ही कहानी है
(हा हा हा मैं हरामी)

मैंने कहा
और पूरा दृश्य रात कि तरह चुप्प
बेबात कि तरह चुप्प  
मुझे थोडा बहुत अंदाज़ा तो था
पर इतने लंबी चुप्पी कि उम्मीद नहीं थी
और मैं हैरान
कि भला एक बेवकूफ लड़की के अकेलेपन में ऐसा क्या है
जो मेरी बेचैनी से बढ़कर हो
मैं उन सब से अलग अलग
एक साथ ये पूछना चाहता था
पर तब तक
खिडकी दीवार में अपनी जगह पर जा चुकी थी
बाहर अँधेरा था
भीतर मैं अँधेरे में
अँधेरा घूरते
कल फिर दोपहर होगी
कल मैं अपनी पहली कविता लिखूंगा
जैसे ये आखिरी कविता लिख रहा हूँ.