Artist - Rohit Dalai |
एक लड़का
बेशर्मों कि तरह रोता जाता था
और उसके बगल से गुज़रती औरत
अपने मरे हुए मर्द को कोसते हुए
सूखी नदी हुई जाती थी
जबकि वो सावन का महीना था
और अभी बहुत से पिल्ले
अपनी आमद कि प्रतीक्षा में थे.
दरअसल
इसी तरह शुरू हुई थी ये दुनिया
कि – “अपना चेहरा हमेशा गोरा रहे
और इसके लिए मै अपनी टट्टी खाने को तैयार हूँ”
कहते हुए टीवी पर लोग मुस्कुराते थे
और कहते थे कि यही हमारा पेशा है
उन्हें ऐसा कहता सुनकर ही
मैंने हंसना सिखा था
रोना तो जनम से ही लग गया था
इस तरह उदासी ने जन्म लिया.
जबकि सारे चुटकुले बासी पड़ गए थे
फिर भी लोग हंसना चाहते थे इसीलिए
कभी कोई अनशन पर बैठ जाता था और कोई
किसी लड़की को सौ लोगों से
सड़क पर बलात्कार करवाता था
कि मनोरंजन ही हमारे समय का इकलौता सच था
और नए चुटकुले गढ़ने को
हमारे पास बहुत उपजाऊ ज़मीनें थीं
ऐसे समय में भी
वो लड़का रोता जाता था
और अपने पहले हस्तमैथुन के अनुभव को
किसी ऐतिहासिक घटना कि तरह याद करते हुए
मुस्कुराता, हँसता जाता था
और उसके हँसने और रोने के
बिलकुल बीच में
एक औरत थी
जो अपने मरे हुए मर्द को याद करते हुए
हरहराती नदी हुई जाती थी.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें