सोमवार, 14 अक्टूबर 2013
क्या ज़रुरी
Artist - Myself |
क्या ज़रुरी
कि मैं ऐसा लिखूँ
जिसमे दुनिया के आँसू हों
पडोसी के बीवी का दुःख हो
अरसा पहले मर गए बाप का अफ़सोस हो
और अपने अब तक नहीं किये पापों के लिए खुशी
(जिन्हें ज़रूर कभी करूँगा)
अरे नहीं छूती मुझे औरों कि तकलीफें
माफ करता हूँ मैं खुद को
खुद ही
क्या ज़रुरी
कि जंगल का मतलब
हमेशा हरियाली हो
और मैं
अपने अंदर के कुँए में डूबते हुए
समंदर का सपना
देखूँ
दिखाऊँ
क्या ज़रुरी
कि मेरे हाथ में हमेशा एक
फटा हुआ झंडा हो
(पोंछा मारने वाले कपड़े का)
कि मैं हमेशा ऐसा कुछ कहूँ
जिसका कोई मतलब ना हो
और लोग ताली पीटते हुए हलकान हो जाएँ
कि जैसे कितनी सुन्दर बात कही है
आओ तुम्हे गले लगाऊँ
तुम्ही सँवारोगे इस जहन्नम को
अच्छा जी
क्या ज़रूरी
कि तुम्हारी इन झूठी तालियों के लिए
मैं हरामी ना बन जाऊँ
हरामखोरों
क्या ज़रूरी.
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