सोमवार, 30 जून 2014
मौसम जिसमे सिर्फ ऊबना
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Artist - Myself |
अब मैं कुछ भी लिखूँगा वो झूठ होगा
कि तरह से कविता है
जैसे लोग झूठ बोलकर भूल जाते हैं
(झूठ भूला दिए जाने के लिए ही होते हैं)
मैं सच को भी झूठ की तरह लिखूंगा
और याद रखूँगा इस बुरे समय को
जिसमे दोस्ती दुश्मनी और दोगलेपन का मतलब
मेरे लिए एक बराबर है...
हालाँकि बात याद रखने और भूल जाने कि भी नहीं
है
और हम सब हरामी लोग हैं
हाँ और उसी साल बाबरी मस्जिद गिराई गई थी
जब हमारे घर में पहला ओनिडा का ब्लैक एंड
व्हाईट टीवी आया था
जिसमे हम रामायण और महाभारत देखते हुए
अजीब सी नैतिकता सीख रहे थे
कि आगे चलकर मुझे दुनिया को गाली बकते
हुए
अपने कमियों को छुपाना था
की जैसे मेरी असफलता का मतलब
दूसरों की अवसरवादिता हो
और एक ही समय में उनके लिए शर्मिन्दा भी
होना था
ताकि मैं अपने अकेलेपन में पीछे जाकर देख
सकूँ
कि गलतियाँ कहाँ हुईं
और आगे जो भी चुतियाप होने हैं
उन्हें कैसे हैंडिल करूँगा
कि बार बार शर्मिन्दा होना मजेदार
चुटकुला बन जाए
और कल को मैं उन पर गर्व कर सकूँ
कि मेरे पास हमेशा से एक ही चेहरा था
जिस पर मुझे झूठ मूठ कि कहानियां और
कवितायेँ गढ़नी थीं
रंग पोतने थे
जैसे चींटियों के चार पंख होते हैं
सपने में बडबडाना बुरी बात है
घटियापन आदतों में शुमार होता है
और मेरे कमज़ोर पड़ने में कहीं साशा ग्रे
का भी हाथ है
ये भी कि अगर मैं न लिखूँ तो मर जाऊँगा
जैसे मरने का मतलब हमेशा मर जाना ही नहीं
होता
वैसा ही मौसम
जिसमे सिर्फ ऊबना
मेरे जैसे चूतियों के लिए काम जैसा
खालीपन
कि अब मैं जो भी कहूँगा वो सच होगा
जैसा ऊटपटांग वाक्य ढूंढते हुए
ऊटपटांग लिखता हूँ
और साला ये साल भी बीत गया
जिसमे बचाया बहुत कुछ
जो खोने से फिर भी कमतर रहा
और इस तरह से कविता आती है
जैसे जा रही हो
कि अफ़सोस धोना भर काम नहीं है कविता का
मैं सुस्ताता भी हूँ कविता में.
शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014
आईना सफ़ेद बिल्ली और साला अजगर
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Screen Shot -The Shining |
१.
अजगर कि तरह
'मैं'
"तुम बाजीगर हो"
- कहकर
सफ़ेद बिल्ली हँसी
हँसी तो फँसी
कहते हैं
सोचकर
झपटा आलसी अजगर
बिल्ली फुर्र
गुर्र गुर्र
अब मैं आराम से फ़िर सो सकता हूँ
सोचकर साला अजगर
मुस्कुरा रिया है.…
२.
मैं आईने मे दिखता हूँ
आईना मुझे घूरता है
और हम दोनों शर्मिंदा होते हैं
यहीं से दुनिया शुरु
कमरे के एकदम कोने मे
दुनिया के बिल्कुल शुरुआत कि तरह
अपने आखिर कि तरफ़
एक सफ़ेद बिल्ली
पालतू
फालतू
मुझे ताड़ती हुई
मैं उसे देखता हुआ
यहीं पे दुनिया खतम.....
३.
दरअसल
मुझे कुछ ऐसा लिखना था
की दूसरों के कपड़े उतारते हुए
मैं खुद नंगा
इस तरह कविता ना हुई
स्नानघर हो गया
चलो अब कहानी कहते हैं
बोलकर बिल्ला पालतू
(मगर फ़ालतू)
अभी हँसा
माँ कसम
बिलकुल अब्भी....…
गुरुवार, 10 अप्रैल 2014
मंगलवार, 25 मार्च 2014
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