शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

हैं जी मीर जी

                                                                                                    Artist - Myself
















दिल्ली पे
थूक दो
मूत दो
चाट लो
बाँट लो
चढ़ जाओ
डर जाओ  
लड़ जाओ
मर जाओ  

दिल्ली चालाक है
कुतिया बदज़ात है

दिल्ली को
काट दो
छील दो
हूँक दो
फूँक दो
तोड़ दो
मोड़ दो
पकड़ के
रगड़ दो

दिल्ली में शोर है
दिल्ली कमज़ोर है

दिल्ली में
रंग है
ढंग है
अंग है
संग है

माँ कसम दिल्ली 
बेरंग और बेढंग है

फिर भी रहना दिल्ली में

हैं जी मीर जी ...

सोमवार, 30 जून 2014

चलो छुट्टी मनाएँ


                                                               Artist - Myself

चलो पहाड़ खोदें
किसी चूतिये चूहे कि तरह

चलो बोझा ढोएं
किसी गरीब गधे कि तरह

चलो गाना गाएं
किसी गँवार गायक कि तरह

चलो छुट्टी मनाएँ
साहू जी कि तरह
एक साल
दो साल

तीन साल......

मौसम जिसमे सिर्फ ऊबना


                                                                        Artist - Myself




















अब मैं कुछ भी लिखूँगा वो झूठ होगा
कि तरह से कविता है
जैसे लोग झूठ बोलकर भूल जाते हैं
(झूठ भूला दिए जाने के लिए ही होते हैं)
मैं सच को भी झूठ की तरह लिखूंगा
और याद रखूँगा इस बुरे समय को
जिसमे दोस्ती दुश्मनी और दोगलेपन का मतलब मेरे लिए एक बराबर है...


हालाँकि बात याद रखने और भूल जाने कि भी नहीं है
और हम सब हरामी लोग हैं

हाँ और उसी साल बाबरी मस्जिद गिराई गई थी
जब हमारे घर में पहला ओनिडा का ब्लैक एंड व्हाईट टीवी आया था
जिसमे हम रामायण और महाभारत देखते हुए अजीब सी नैतिकता सीख रहे थे
कि आगे चलकर मुझे दुनिया को गाली बकते हुए
अपने कमियों को छुपाना था
की जैसे मेरी असफलता का मतलब
दूसरों की अवसरवादिता हो
और एक ही समय में उनके लिए शर्मिन्दा भी होना था
ताकि मैं अपने अकेलेपन में पीछे जाकर देख सकूँ
कि गलतियाँ कहाँ हुईं
और आगे जो भी चुतियाप होने हैं
उन्हें कैसे हैंडिल करूँगा
कि बार बार शर्मिन्दा होना मजेदार चुटकुला बन जाए
और कल को मैं उन पर गर्व कर सकूँ
कि मेरे पास हमेशा से एक ही चेहरा था  
जिस पर मुझे झूठ मूठ कि कहानियां और कवितायेँ गढ़नी थीं
रंग पोतने थे
जैसे चींटियों के चार पंख होते हैं
सपने में बडबडाना बुरी बात है
घटियापन आदतों में शुमार होता है
और मेरे कमज़ोर पड़ने में कहीं साशा ग्रे का भी हाथ है

ये भी कि अगर मैं न लिखूँ तो मर जाऊँगा
जैसे मरने का मतलब हमेशा मर जाना ही नहीं होता
वैसा ही मौसम
जिसमे सिर्फ ऊबना
मेरे जैसे चूतियों के लिए काम जैसा खालीपन

कि अब मैं जो भी कहूँगा वो सच होगा
जैसा ऊटपटांग वाक्य ढूंढते हुए
ऊटपटांग लिखता हूँ
और साला ये साल भी बीत गया
जिसमे बचाया बहुत कुछ
जो खोने से फिर भी कमतर रहा
और इस तरह से कविता आती है
जैसे जा रही हो
कि अफ़सोस धोना भर काम नहीं है कविता का

मैं सुस्ताता भी हूँ कविता में.

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

आईना सफ़ेद बिल्ली और साला अजगर

                                          Screen Shot -The Shining
      





















 १. 

अजगर कि तरह 
'मैं'

"तुम बाजीगर हो"
- कहकर 
सफ़ेद बिल्ली हँसी  

हँसी तो फँसी 
कहते हैं 
सोचकर 
झपटा आलसी अजगर 
बिल्ली फुर्र 
गुर्र गुर्र 

अब मैं आराम से फ़िर सो सकता हूँ 
सोचकर साला अजगर 
मुस्कुरा रिया है.… 

       २. 

मैं आईने मे दिखता हूँ 
आईना मुझे घूरता है 
और हम दोनों शर्मिंदा होते हैं 
यहीं से दुनिया शुरु 

कमरे के एकदम कोने मे 
दुनिया के बिल्कुल शुरुआत कि तरह 
अपने आखिर कि तरफ़ 
एक सफ़ेद बिल्ली 
पालतू 
फालतू
मुझे ताड़ती हुई 
मैं उसे देखता हुआ 
यहीं पे दुनिया खतम..... 

       ३. 

दरअसल 
मुझे कुछ ऐसा लिखना था 
की दूसरों के कपड़े उतारते हुए 
मैं खुद नंगा 
इस तरह कविता ना हुई 
स्नानघर हो गया

चलो अब कहानी कहते हैं
बोलकर बिल्ला पालतू 

(मगर फ़ालतू)
अभी हँसा 
माँ कसम 
बिलकुल अब्भी....… 

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

बेकार वेकार

                                                        Artist - Ashutosh Tripathi
रुका हुआ 
तगड़ा 
मगर 
लंगड़ा 
समय 
में 
से 
निकालता 
उड़ेलता 
उल्टी करता 
कलाकार 
सिपहसलार 
तगड़ा 
मगर लंगड़ा 
बेकार 
                                                                                      वेकार.... 

बच्चों कहानी ख़तम हुआ

   Artist - Ashutosh Tripathi




जंगल में मोर नाचा किसने देखा ?

    मैंने देखा 
      मैंने देखा 
         कहते हुए 
           दो अंधे लड़ पड़े 
            गूंगा उन्हें समझाते हुए 
           मुर्गी और मोर में 
         अंतर बतलाता है 
      ऐसी ही बारिश में 
    चूज़े का जन्म हुआ
  बच्चों कहानी ख़तम हुआ

कहकर उल्लू चुप लगा जाता है। 

प्यार में कभी कभी ऐसा हो जाता है

                                                 Artist - Rohit Dalai

आलू कचालू 
दो भाई थे 
दोनों हरामी 
सो रहे थे 
मम्मी बेचारी
पिट रही थी 
(सॉरी रॉन्ग नंबर)
मम्मी कमीनी 
जो पीट रही थी 
पापा 
निगोड़े 
जो गा रहे थे -
"प्यार में कभी कभी 
ऐसा हो जाता है 
छोटी सी बात का 
फ़साना बन जाता है. "