Artist - Jiten Sahu |
अकेलेपन में
खाली बैठे बैठे मै ऊब गया था
नींद कहीं नहीं थी
और टेबल पर डायरी पड़ी थी
सामने खिडकी खुली थी
बाहर रात थी और हवा
जिसमे काँपते जुड़ाते पेड़ खड़े थे.
मैंने अपनी ऊब मिटाने के लिए
डायरी खोला
पन्ने उलटे
पेन को आगे से नंगा किया
और दराज़ से
एक धारदार, नुकीला सा शब्द निकालकर
डायरी में टीप दिया
एक बहुत ही नरम
और गुदगुदा सा शब्द
तितली सा उड़ता हुआ
खिडकी के रास्ते
मेरी डायरी के उस पन्ने पर
छप्प से कूद गया
कुछ शरमाये से शब्द
जो इधर उधर छुपे बैठे थे
वे भी आकर
इन शब्दों के इर्द गिर्द पड़ गए
पीछे मेरे बिस्तर पर
लिहाफ़ ओढ़े कुछ शब्द और थे
वे भी ठिठुरते हुए आकर
उसी पन्ने पर बाकी शब्दों से सटकर लेट गए
जब हाथों को गरमाने के लिए जेब में हाथ
डाला
तो वहाँ भी कुछ शब्द
चिल्हर पैसों के साथ पड़े थे
उन्हें भी लाकर डायरी के पन्ने पर उलट
दिया
कुछ शब्द तो बस आवारगी में
भटकते हुए से आ गए
तो कुछ ठहरकर
तमाशा देखने के लिहाज़ से ही वहाँ रह
गए
इस तरह थोड़ी ही देर में
शब्दों कि एक पूरी जमात पन्ने पर बिछ गई
अब मैंने इस खेल को बंद किया
मेरी ऊब अब तक झर चुकी थी
मैंने पेन को साबुत किया
और उसके घर में धर दिया
फिर अपनी आँखों से उन शब्दों को
छूने, सहलाने और चूमने लगा
और अचानक से देखता क्या हूँ
कि उस पन्ने पर
एक खूबसूरत सी कविता खड़ी थी
अजीब और अनोखे तेवर में
मुझे देखती हुई
मुझसे अलग
खुद अपने में सांस लेती हुई कविता.
अब कंही कोई ऊब और अकेलापन नहीं था
मै उसके साथ चैन से सो सकता था.
behtreen ......kavita.
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