Artist - Rajkumar Sahni |
भांड में गई ऐसी विनम्रता
और
सही होने की ज़िद
जिसमे कछुवे कि तरह जीते हुए
तीन सौ साल लंबी ऊब और उम्र मिले
और
आखिर में एक तस्वीर
जिसमे हम
फटे हुए चूत कि तरह मुस्कुराते दिखें
और
भांड में गई ऐसी नैतिकता
कि उनके घटियापन को उस्तादी कहूँ
और अपने बेवकूफियों को बकचोदी
और हँसता रहूँ इस बात पर
कि मुझे सिर्फ उदास चेहरे ही पसंद आते
हैं
और
भांड में गए वे सारे लोग
जिनके नहीं होने से भी
मैं तो हूँ ही
फिर क्या अचार डालूँ उनके होने का
इसलिए चलो
भांड में जाता हूँ मैं भी.
sahi.... sahi... sahi...
जवाब देंहटाएंmujhe sirf udaas chehre hi pasand aate hain