Artist - Tulsi Ram |
बाप रे
कितना तो सहते हैं
ये बेचारे शब्द
भीतर का सारा मैल उड़ेल दो इन पर
फिर भी बिना उफ्फ किये
चुपचाप बिछते चले जाते हैं पन्ने पर
तुम्हारा क्या है
तुम तो जनाब चल दिए मुँह उठाए
दुःख बटोरने
पर लाकर मत्थे तो मढोगे इन्ही शब्दों के सर
उस पर भी तुर्रा ये
कि अनुभव हैं
अरे महराज
अपने पिछवाड़े डालो ये अनुभवों की पोटली
जिनसे ना ढँग की कविता बनती है
और ना कोई काम
ऊपर से शब्दों का जो हर्जा होता है
सो अलग.
Bahut badiya
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