Artist - Raj kumar Sahani |
शहर में
वो एक अकेला इतना भूखा था
की पूरा शहर निगल गया.
"कितना बड़ा शहर था?"
नायिका पूछती है
"नंगेपन की दूसरी कोई परिभाषा नहीं"
कहकर नायक अपने कपडे उतरता है.
"मेरे पीरियड्स चल रहे हैं वरना हम साथ सो सकते थे."
नायिका कहती है
नायक के दिमाग में खरगोश है
"मैंने कभी खरगोश का गोश्त नहीं चखा"
नायक सोचता है
और कुछ नहीं होता
जैसे कभी कुछ नहीं होता
"हमेशा हर वक्त कुछ ना कुछ होते रहता है फिर भी हम बस हो चुके को बार बार दुहराते रहते हैं और एक दिन मर जाते हैं जबकि मरने से पहले हमें कुछ करना चाहिए जिसका कुछ मतलब निकलता हो वरना मैं अभी ही मर जाऊंगा।"
कहकर नायक रोने लगता है
नायिका हंसती है और अपने कपडे उतारती है
कविता कहानी के साथ सोती थी
और रोती थी
इस तरह चुटकुले का जन्म हुआ
आओ हम सब मिलकर इस चुटकुले पर हंसें।
Superb. :-)
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