सोमवार, 3 दिसंबर 2012

मै हंस रहा था

                                Artist - Jiten Sahu




















एक दिन मै उदास था
बहुत उदास
और तब
एक प्यारी सी बच्ची मेरे पास आई
और अपनी बंद मुट्ठियाँ
मेरे आगे बढ़ाकर कहा
इनमे रंगीन तितलियों कि छुअन है
खट्टे इमली कि गंध
और कच्चे बेरों कि मिठास है
और मेरे मासूम गुड़ियों कि खिलखिलाहट भी 
कल रात ही इनमे मैंने सितारों को भिंचा था
और सुबह सूरज को
इन्ही मुट्ठियों से निकलकर उगना पड़ा है
तुम मेरी इन मुट्ठियों को खोलो
और अपने लिए
जिंदगी के कुछ मानी चुन लो
कुछ मुस्कुराहटें खींच लो
और बहुत हुआ अब हंस भी दो

हा हा हा ....
मै हंस रहा था.

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

जब दुनिया ऐसी थी

                                                 Artist - Pramod Kashyap




















सब चुप रहकर सुनते हैं 
चिड़ियों का बड़बड़ाना
कि पिछली बार दुनिया कैसे खत्म हुई थी
और आखिरी तानाशाह किस तरह मरा

सब चुप रहकर चिड़ियों को कोसते हैं
और एक दूसरे का हाथ थामकर
धूप के भीतर उतर जाते हैं
ये सोचकर हैरान होते हुए
कि आखिर कौन सी वो सदी थी
जब दुनिया ऐसी थी
कि उसे खत्म हो जाना पड़ा.

रविवार, 7 अक्टूबर 2012

अच्छा ही हुआ

                                     Artist - Edvard Munch


  






   


    
    १.

किसी और को नहीं
पहले
खुद अपने को माफ करना सीख

क्यूंकि
इस दुनिया में
कोई तेरे माफ़ी के काबिल नहीं
अबे जा साले
खुद तू भी नहीं.

   २.

और मरते हुए राजा कि मज़बूरी थी
किसी न किसी बेटे को तो राज्य
सौंपकर ही जाना था
जबकि
राजा जानता था
कि उसके तीनो बेटे
उसकी नहीं
बल्कि रानी के ऊब से पैदा हुई संताने थीं
और सारे असली राजकुमार
राजा के भाइयों कि तरह ही
गुमशुदा कि तलाश थे.

   ३.

फिर भी
सूरजमुखी ने कोई शिकायत नहीं की
और चुपचाप
गमले में
पालथी मारकर बैठ गया.

   ४.

बिना तीर, बन्दूक के भी
शिकार होते हैं
और किसी को जान से मार देने के लिए
उसके नाम पर
थूक देना भर ही काफी है.

   ५.

अब
मै तुमसे विदा लेती हूँ
कहकर
कविता ने
मेरे नाम पर थूक दिया.

   ६.

बुरा ही हुआ

   ७.

अच्छा ही हुआ.

शनिवार, 1 सितंबर 2012

अकेले आदमी का नाच

                                     Artist - Myself




















एक आदमी उठता है
कहीं बहुत दूर चले जाने के लिए
और अपने कमरे में ही
गोल - गोल चक्कर काटता है
फिर थककर बैठ जाता है बिस्तर पर
जैसे बहुत दूर निकल आया हो
और थोड़ी देर को सुस्ताने बैठा हो
उठकर फिर चलना शुरू करता है
कि अभी और दूर जाना है.

एक आदमी जो
अपने कमरे से निकलकर
अपने ही कमरे में लौट आता है
और बीच में
जाने
कितने पहाड़
कितने जंगल
जितने लोग
उतने चेहरे  
कितने शहर
कितनी नदियाँ
उतने ही दिन
जितनी रातें  
पार कर आता है
हार कर आता है.

एक आदमी उठता है
और फिर सो जाता है.

शनिवार, 18 अगस्त 2012

दुनिया रोज़ कपड़े बदलती है

                                Artist - Rene Magritte 






















हर इस्तेमाल हुए चेहरे के लिए
मै अलग अलग शब्द ढूंढता हूँ
कि जैसे आखिरी बार मैंने कब झूठ बोला था
और पिताजी को मुझ पर इतना गर्व था
कि वो लगभग झिझकते हुए से
मुझसे पानी का गिलास मांगते थे.

बचपन के किसी शाम में
राख से बर्तन घिसती मेरी अम्मा ने मुझे बताया था
कि दुःख, आग से बर्तन पर लगी कालिख है 
इसे घिस घासकर चमकाना पड़ता है
और उसी शाम गांव में पहला रंगीन टीवी आया था.

जबकि बचपन के रोने में
सिर्फ एक चेहरा भीगता था
और अपने बड़े होते जाने में
ढेर सारी लालसाओं का हाथ था
इस तरह सारे चेहरे लिसलिसे थे.

फिर भी नहाते वक्त मै आज भी गाने गाता हूँ
और धूप देखकर खुश हो जाता हूँ
कि यही वो नया चेहरा है
जो कभी पुराना नहीं पड़ता
जबकि दुनिया रोज़ कपड़े बदलती है.

बुधवार, 15 अगस्त 2012

इसी तरह शुरू हुई थी ये दुनिया

                               Artist - Rohit Dalai





















एक लड़का
बेशर्मों कि तरह रोता जाता था
और उसके बगल से गुज़रती औरत
अपने मरे हुए मर्द को कोसते हुए
सूखी नदी हुई जाती थी  
जबकि वो सावन का महीना था
और अभी बहुत से पिल्ले
अपनी आमद कि प्रतीक्षा में थे.

दरअसल
इसी तरह शुरू हुई थी ये दुनिया
कि अपना चेहरा हमेशा गोरा रहे
और इसके लिए मै अपनी टट्टी खाने को तैयार हूँ
कहते हुए टीवी पर लोग मुस्कुराते थे
और कहते थे कि यही हमारा पेशा है
उन्हें ऐसा कहता सुनकर ही
मैंने हंसना सिखा था
रोना तो जनम से ही लग गया था
इस तरह उदासी ने जन्म लिया.

जबकि सारे चुटकुले बासी पड़ गए थे
फिर भी लोग हंसना चाहते थे इसीलिए
कभी कोई अनशन पर बैठ जाता था और कोई
किसी लड़की को सौ लोगों से
सड़क पर बलात्कार करवाता था
कि मनोरंजन ही हमारे समय का इकलौता सच था
और नए चुटकुले गढ़ने को
हमारे पास बहुत उपजाऊ ज़मीनें थीं

ऐसे समय में भी
वो लड़का रोता जाता था
और अपने पहले हस्तमैथुन के अनुभव को
किसी ऐतिहासिक घटना कि तरह याद करते हुए
मुस्कुराता, हँसता जाता था
और उसके हँसने और रोने के
बिलकुल बीच में
एक औरत थी
जो अपने मरे हुए मर्द को याद करते हुए
हरहराती नदी हुई जाती थी.

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

मै भी कवि हो गया


                                Artist - Rohit Dalai 




















कोई दुःख नहीं था
इसलिए दुखी होने की कल्पना भी
एक अतिरिक्त ऐय्याशी थी

फिर भी लोग हँसते थे
और बताते थे
की हँसने से शरीर में वीर्य की वृद्धि होती है
और जिन्हें तुमने अभी-अभी
धूप में पसीना सुखाते हुए देखा था
दरअसल 
वही हमारे समय के सबसे मज़ेदार चुटकुले हैं
- ऐसा कहते वक्त
अक्सर उन लोगों का चेहरा गुस्से से तन जाता था
और हंसी से फट पड़ता था.

मैंने बरसों तक
उन्हें उनकी बातों और हँसने के अंदाज़ को
बहुत गंभीरता से सुना, समझा
और चूँकि
मेरे पास भी कोई दुःख नहीं था दिखाने के लिए
इसलिए बहुत सुखी हूँ कहते हुए
बालकनी से झांककर उन्हें देखता हूँ
जो धूप में बैठकर पसीना सुखाते हैं
और कमरे के भीतर आकर हँसता हूँ
(हँसने से वीर्य में वृद्धि होती है)
और इस तरह देखो आप
कि मै भी कवि हो गया.