मंगलवार, 26 जनवरी 2016

मह मह महकते मोगरे की तरह

                                                                           Artist - Myself





















मह मह महकते मोगरे की तरह
सूंघता हूँ तुम्हे
बहुत थका होने पर भी
भागकर चढ़ जाता हूँ सीढियाँ
चौथे माले के हमारे कमरे तक
रोज़ आती है एक अदृश्य गौरैय्या
तुम्हारे चहचहाने में शामिल
हमारे शामिल से गायब
उदासी जो मेरे साथ बड़ी हुई थी
कहीं रखकर भूल गया हूँ
कौन है जिसे याद कर मुस्कुराती हो
जब अपने जलते हुए सीने में नंगे पाँव दौड़ता हूँ
धीरे से फुसफुसाकर कह दिया करो
मैं थोड़ी देर और सो लूंगा
तुम थोड़ा सा और हंस लेना।
  

शुक्रवार, 27 मार्च 2015

लाली

                                       Artist - Myself





















एकदम खौलते हुए दिन से
छानकर निकाला है तुम्हे
चाँद की तरह
चिकनी गोरी गोल मोल छल्ला
गले में कसता हुआ
फँसता हुआ
हँसता हुआ मैं
हा हा हा ...


अरे भोली
तेरे जीभ की नोक पर
जो ज़हर है
उसे ही चाटकर धूप इतना नीला है
की जिसमे उबलते हुए
मैं लाल हुआ जाता हूँ
जैसे सेब लाल होता है
जैसे लाल लाल होता है
जैसे तू लाल है

लाली.

बुधवार, 9 जुलाई 2014

तुम सब घटिया लोगों का लेखा जोखा हूँ मैं

                                                                        Artist - Myself




















तुम सब घटिया लोगों का लेखा जोखा हूँ मैं 

तू अपना नाम भी जोड़ ले उसमे 

ऐसी नफरत 
जिसमे बच्चे झूठ हैं 
कविता कोढ़ 
सच साधू 
मैं जादूगर 
तू कुतिया 
दोस्त दगाबाज़
नागार्जुन कौन ??

आते हुए कहूँगा
जाते हुए चुप था
बेशरम
ऐसी व्यस्तता
जैसे बहुत खाली समय

क्या ये गुलाब है ??

सूंघकर खट्टा
मेरे नाम का बट्टा
खट्टा वट्टा
झूठ का सट्टा
उसी से लियो खलबट्टा
जिसमे झूठ सच सब पीस जाता है

घिस जाती है घाम
घाम मतलब धूप
मतलब ऊब
मतलब ऊँघ
जैसे छोटा सपना
खटना जाए खटाई में
मुक्तिबोध को मिले कमाई में
चाँद का मुँह टेढ़ा

जिस दिन सूरज खाऊंगा
उस दिन बताऊंगा
कितना नंगा हूँ मैं
बहुत चंगा हूँ मैं.

सबसे नकली कवि

                                        Artist - Francis Bacon


























इस ईमान पोंकते समय में
कैसे लिखूँ
एक ईमानदार कविता
मेरी बेईमानी तो कविता के पहले अक्षर से ही रंग पकड़ लेती है
मैं लिखता हूँ सिर्फ इसलिए
कि खाली दिन की बीमारी और बोझिलता कुछ कम
 हो

इंटरनेट पर पोर्न फिल्में देखना
खुली आँखों से
सड़क  पर चलती लड़कियों के
उभारों और किनारों पर
लपलपाना थपथपाना
किसी बहुत चुतियाप भरी बात पर झल्लाना
बड़बड़ाना
गिड़गिड़ाना
और कोरे कुँवारे पन्ने पर कोई बकवास सी कविता
लिखना
दीखना
जैसे गायब हूँ
इन्हे करने में मेरी उतनी ही ईमानदारी है
जितना की
अपने मरे हुए पिता से प्रेम

मैं इस असली और ईमानदार समय का
सबसे नायाब नगीना
कविताएँ हगता हुआ
सच और सही को
ठगता हुआ
सबसे नकली
कवि हूँ
रवि हूँ
हूँ।

शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

हैं जी मीर जी

                                                                                                    Artist - Myself
















दिल्ली पे
थूक दो
मूत दो
चाट लो
बाँट लो
चढ़ जाओ
डर जाओ  
लड़ जाओ
मर जाओ  

दिल्ली चालाक है
कुतिया बदज़ात है

दिल्ली को
काट दो
छील दो
हूँक दो
फूँक दो
तोड़ दो
मोड़ दो
पकड़ के
रगड़ दो

दिल्ली में शोर है
दिल्ली कमज़ोर है

दिल्ली में
रंग है
ढंग है
अंग है
संग है

माँ कसम दिल्ली 
बेरंग और बेढंग है

फिर भी रहना दिल्ली में

हैं जी मीर जी ...

सोमवार, 30 जून 2014

चलो छुट्टी मनाएँ


                                                               Artist - Myself

चलो पहाड़ खोदें
किसी चूतिये चूहे कि तरह

चलो बोझा ढोएं
किसी गरीब गधे कि तरह

चलो गाना गाएं
किसी गँवार गायक कि तरह

चलो छुट्टी मनाएँ
साहू जी कि तरह
एक साल
दो साल

तीन साल......

मौसम जिसमे सिर्फ ऊबना


                                                                        Artist - Myself




















अब मैं कुछ भी लिखूँगा वो झूठ होगा
कि तरह से कविता है
जैसे लोग झूठ बोलकर भूल जाते हैं
(झूठ भूला दिए जाने के लिए ही होते हैं)
मैं सच को भी झूठ की तरह लिखूंगा
और याद रखूँगा इस बुरे समय को
जिसमे दोस्ती दुश्मनी और दोगलेपन का मतलब मेरे लिए एक बराबर है...


हालाँकि बात याद रखने और भूल जाने कि भी नहीं है
और हम सब हरामी लोग हैं

हाँ और उसी साल बाबरी मस्जिद गिराई गई थी
जब हमारे घर में पहला ओनिडा का ब्लैक एंड व्हाईट टीवी आया था
जिसमे हम रामायण और महाभारत देखते हुए अजीब सी नैतिकता सीख रहे थे
कि आगे चलकर मुझे दुनिया को गाली बकते हुए
अपने कमियों को छुपाना था
की जैसे मेरी असफलता का मतलब
दूसरों की अवसरवादिता हो
और एक ही समय में उनके लिए शर्मिन्दा भी होना था
ताकि मैं अपने अकेलेपन में पीछे जाकर देख सकूँ
कि गलतियाँ कहाँ हुईं
और आगे जो भी चुतियाप होने हैं
उन्हें कैसे हैंडिल करूँगा
कि बार बार शर्मिन्दा होना मजेदार चुटकुला बन जाए
और कल को मैं उन पर गर्व कर सकूँ
कि मेरे पास हमेशा से एक ही चेहरा था  
जिस पर मुझे झूठ मूठ कि कहानियां और कवितायेँ गढ़नी थीं
रंग पोतने थे
जैसे चींटियों के चार पंख होते हैं
सपने में बडबडाना बुरी बात है
घटियापन आदतों में शुमार होता है
और मेरे कमज़ोर पड़ने में कहीं साशा ग्रे का भी हाथ है

ये भी कि अगर मैं न लिखूँ तो मर जाऊँगा
जैसे मरने का मतलब हमेशा मर जाना ही नहीं होता
वैसा ही मौसम
जिसमे सिर्फ ऊबना
मेरे जैसे चूतियों के लिए काम जैसा खालीपन

कि अब मैं जो भी कहूँगा वो सच होगा
जैसा ऊटपटांग वाक्य ढूंढते हुए
ऊटपटांग लिखता हूँ
और साला ये साल भी बीत गया
जिसमे बचाया बहुत कुछ
जो खोने से फिर भी कमतर रहा
और इस तरह से कविता आती है
जैसे जा रही हो
कि अफ़सोस धोना भर काम नहीं है कविता का

मैं सुस्ताता भी हूँ कविता में.