Artist - Myself |
क्या मुझे इस बात की सफाई देनी होगी
की उस पौधे को
मैंने बिना किसी फल की कामना किये बोया था.
ये भी हो सकता है की
अपने नाख़ून कुतरते हुए
उनके बीच जमा हुआ मैल भी मैंने चाट लिया हो
और अब मेरे भीतर
एक सूखी हुई नदी है
जिसकी रेत पर
बकरियों की लेडियां बिखरी पड़ी हैं
और मै सिर्फ
नकली शब्दों का धंधा करता हुआ
एक नामर्द कवि हूँ , जिसका कोई पाठक न हो.
या फिर शायद
कंही कुछ छुट गया है
कुछ रह गया है
जैसे एक टूटा हुआ पुल
एक बिगड़ी हुई घडी
और भीतर से भरा हुआ
खाली बदबूदार समय
जिसमे अपना ही चेहरा, पहचान न पड़ता हो
(और ये लिखते हुए मै थोड़ी झिझक महसूसता हूँ)
की मै अपने ही बुने हुए
उल -जुलूल सपनो का
एक हारा हुआ नायक हूँ
मेरी आँखों का पानी
कुछ नहीं सिर्फ
बासी ,बची-खुची नींद के दो चहबच्चे हैं
और वो पौधा
इन्ही चह्बच्चो के पानी से सींचा हुआ
एक और हरा ,मुलायम ,उल-जुलूल सपना है
जिसे सचमुच , मैंने बिना किसी कामना के बोया था.
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