गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

हर दुःख की अपनी ही अलग भाषा होती है

Artist - Shailendra Sahu

हर मौसम की 
अपनी कुछ मक्कारियां होती हैं
अपनी यादें
और उदासियाँ
उबासियाँ
जैसे हर दुःख की अपनी ही अलग भाषा होती है
जिसमे हम अपने रोने को इस तरह लिखते हैं
की भीतर का खालीपन
आँख में उतरने से पहले ही सूख जाये
और तुम्हारा होना
या नहीं होना
बहुत पहले पढ़ी और पढ़कर भूल गई
कविता के याद की तरह सुनाई दे .

हर दिन तुम्हारे होने को

कभी कभी तो हम साथ थे की तरह सुनता हूँ.

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