अपनी कुछ मक्कारियां होती हैं
अपनी यादें
और उदासियाँ
उबासियाँ
जैसे हर दुःख की अपनी ही अलग भाषा होती है
जिसमे हम अपने रोने को इस तरह लिखते हैं
की भीतर का खालीपन
आँख में उतरने से पहले ही सूख जाये
और तुम्हारा होना
या नहीं होना
बहुत पहले पढ़ी और पढ़कर भूल गई
कविता के याद की तरह सुनाई दे .
हर दिन तुम्हारे होने को
कभी कभी तो हम साथ थे की तरह सुनता हूँ.
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