रविवार, 19 मई 2013

चाँद हमेशा से ही बदसूरत था


                                                       Artist - Basist Kumar


















कभी कभी
मैं सिर्फ लिखने के लिए जागता हूँ
और जागते हुए सोचता रहता हूँ
कि ऐसा क्या लिखूं
जो नींद आ जाए

फिर बीच बीच में
रह रहकर
कुत्ते भौंकते हैं
पर इससे मेरे नींद की सोच में
कोई खलल नहीं पड़ता

और चाँद हमेशा से ही बदसूरत था

और मई कि इस रात के बारे में क्या कहूँ 
ऊपर से ये बहनचोद मच्छर
इनका बस चले तो मेरी जान लेकर ही मानें

इन पर और कैसी कविता लिखूँ?

सोमवार, 13 मई 2013

भांड में जाता हूँ मैं भी

                                                    Artist - Rajkumar Sahni















भांड में गई ऐसी विनम्रता
और
सही होने की ज़िद
जिसमे कछुवे कि तरह जीते हुए
तीन सौ साल लंबी ऊब और उम्र मिले
और
आखिर में एक तस्वीर
जिसमे हम 
फटे हुए चूत कि तरह मुस्कुराते दिखें
और
भांड में गई ऐसी नैतिकता
कि उनके घटियापन को उस्तादी कहूँ
और अपने बेवकूफियों को बकचोदी
और हँसता रहूँ इस बात पर
कि मुझे सिर्फ उदास चेहरे ही पसंद आते हैं
और
भांड में गए वे सारे लोग 
जिनके नहीं होने से भी
मैं तो हूँ ही
फिर क्या अचार डालूँ उनके होने का
इसलिए चलो
भांड में जाता हूँ मैं भी.

गुरुवार, 2 मई 2013

मै सिर्फ एक बार तेरे साथ सोना चाहता हूँ इसे दूसरी तरह से कैसे कहूँ



                                                          Artist - Rohit Dalai




















कभी कभी मैं लिखने, सोचने और कल्पनाएँ करने को भी ज़रूरी काम कि तरह देखने लगता हूँ और ऐसा करते ही लिखना सचमुच काम कि तरह ही बोरिंग और बोझ लगने लगता है फिर भी मैं आपको लिखकर बताता हूँ कि उस दिन हम दोनों इस तरह से बैठे थे मानो इसके बाद हमें किन्ही नए शहरों की ओर कूच करना हो जैसी खुशी और घबराहट के साथ अगल बगल और हमारे पीछे एक छोटी सी पेड़ पौधों की नर्सरी थी जहाँ मुश्किल से दस ही किसम के पौधे होंगे उनमे से भी आधे मुरझाए हुए हवा कम थी और मै सिर्फ सत्ताईस बरस का था ज़ाहिर है कि वो मुझसे उम्र में थोड़ी छोटी थी और शहर बहुत बड़ा

हाय हेल्लो जैसी बेकार सी बातों के बाद...

- (मुस्कुराकर) मै सिर्फ एक बार तेरे साथ सोना चाहता हूँ , इसे दूसरी तरह से कैसे कहूँ
- (हैरानी से) कोई ज़रूरत नहीं
- (मुस्कुराकर) अबे तेरे लिए बहुत सी कवितायेँ लिखी हैं मैंने, अब सोच की जब बहुत साल बाद तू इन्हें पढेगी तेरे चेहरे पर झुर्रियाँ होंगी और मेंरी याददाश्त पर जाले. साथ सोना याद रखने का अच्छा टोटका है.

ये सब मैंने उस बेवकूफ लड़की से कहा जो उन लड़कों के बारे में सोचकर उदास होती थी जिन्होंने उसे कभी प्यार नहीं किया हालांकि वो अप्रैल में सूरज के मरने से कुछ देर पहले की शाम थी और उस दिन उससे मिलने के लिए ही खास तौर पर मैंने अपने बाल और दाढ़ी मूंछों पर कैंची चलवाया था जबकि वो घोर गरीबी के दिन थे जिसमे दाढ़ी मूँछो पर पैसे खर्च करना बेकार किस्म की ऐय्याशी थी और वो भी तब जब पैसे उधार के हों
(जिसके लिए बाद में मैंने हफ्ते भर अफ़सोस भी किया था)

अपने घुटनों के बीच सर देकर वो धीरे से खुश होकर हँसी
(कमीनी मैंने देख लिया था)
फिर भी मैंने कीलों से बिंधे ईसा का चेहरा ओढकर उसकी तरफ उम्मीद से देखा
(ये मेरी बेवकूफी थी या हरामीपन)

-  (शरारतन) मुझे कविताओं में कोई दिलचस्पी नहीं.
- (शरारतन) इसीलिए तो, मेरे साथ एक बार सोने के बाद तुझे कविताओं में दिलचस्पी हो जाएगी
- (झूठी) बस इन्ही वजहों से नहीं मिलना चाहती थी तुझसे
- (कमीना) तुझे अंदाज़ा था ?
- (झूठी) थोड़ा बहुत
- (कमीना) पर तेरे साथ सोने के बारे में मैंने बस अभी अभी सोचा, जब तू रिक्शे से उतर रही थी और मैं हैरान हूँ की पिछले २ सालों में कभी ये ख़याल क्यूँ नहीं आया
- (इर्रिटेटेड) क्यूंकि हम दोस्त थे
- (इर्रिटेटेड) बकवास
- (इर्रिटेटेड) मैं जा रही हूँ

उसने बैग से डीयो निकलकर अपने बगलों में छिड़का हालाँकि हमारे आस पास तीसरा कोई नहीं था
(मुझे अब तक उस डीयो की बदबू याद है)
गुस्सा तो इतना आया की खुद ही उठकर चला जाऊं पर मुझे कहानी में वहाँ तक जाना था जहाँ नौ महीनों के बाद रानी ने पत्थर जना था
(अच्छा जी)

- (बेशरम) यार प्लीज़ थोड़ी देर और रुक जा, ये आखिरी कहानी है जिसमे तू है
- (कठोर) ये तू पहले भी कह चुका है
- (देवदास) तब सोचकर नहीं कहा था
- (बेवकूफ) पिछली कहानी में मैं बकरी थी अबकी इस कहानी में क्या हूँ?
- (समझदार) इससे क्या फर्क पड़ता है
- तू मुझे अपनी कहानियों में इस्तेमाल करे और मुझे जानने का भी हक़ नहीं...
 (मैं अपना माथा पीटता हूँ)
- अबे मुझे लिखने के लिए लात चाहिए, ज़माने कि लात से कुछ खास असर नहीं होता इसलिए तेरे पास आता हूँ
 (वो अपना माथा पीटती है)
- झूठा
- तुझसे कम
- जाकर किसी और कि लात खा..
- हा हा हा तो सुन...एक राजा था आठ शादियों के बाद भी संतान सुख से वंचित तो उसने नौवीं शादी भी कर ही लिया और किस्मत से कुछ ही महीनों में रानी प्रेग्नेंट अब राजा के साथ पूरी प्रजा भी खुशी से इंतज़ार में पगलाई हुई और आखिरकार वो दिन आया जब रानी के बहुत दर्द उठा पर ये क्या रानी ने बच्चे की जगह पर एक पत्थर के धेले को जन्म दिया और....
- (खुश होकर) तो इस कहानी में मै रानी हूँ..
- (उदास होकर) नहीं, बल्कि वो पत्थर जिसे रानी ने जना..
- (गुस्से से) क्या बकवास है, मैं जा रही हूँ
- (बेसब्र होकर) अबे आगे तो सुन...फिर उसी पत्थर से राजा ने रानी का सर कुचल दिया...
- (डाँटकर) तू कोई ढंग की सी कहानी नहीं लिख सकता जिसे पढकर, सुनकर मैं खुश हो जाऊं
- (प्यार से) यार मैं कब से ये पूछना चाह रहा था तुझसे की तू इतना खुश कैसे रह लेती है ?
- (दार्शनिक अंदाज़ में) मैं खुश रहती हूँ और कुछ रहना भूल गई हूँ क्यूंकि इस शहर में बहुत से शहतूत के पेड़ हैं शायद इसलिए भी मुझे शहतूत पसंद नहीं भले ही वो देखने में अच्छे लगते हैं और आखिरी बार मैं खँडहर फिल्म देखकर रोई थी जबकि शबाना आज़मी मुझे कभी अच्छी नहीं लगी और तुझे क्यूँ लगा की मै उदास रहती हूँ
- तुझे कवितायेँ पढ़नी चाहिए और अभी के हिरोइनों में सिर्फ तब्बू है जिसके साथ सोने के बारे में मैंने कभी नहीं सोचा मुझे लगता है मै उसके साथ घंटों चुप बैठ सकता हूँ हा...हा...हा....और मैंने ये कब कहा की तू उदास रहती है

वो भी हँसने लगी फिर बैग के भीतर ही आइना खोलकर अपने अन्डोतरे चेहरे को निहारकर मुस्कुराई और आदतन बालों पर हाथ फेरा
(तब मैंने सोचा था की क्या खूबसूरत लडकियां भी ऐसा ही करती होंगीं)

- (ब्लैंक) अब जल्दी से बोल क्या बात करनी थी तुझे क्यूंकि मुझे कहीं जाना भी है
- (बोर) अरे मेरी अम्मा कितनी देर से तो बोल रहा हूँ पर तू मुझे सीरियसली ले ही नहीं रही
- (ब्लैंक) देख साफ़ बात ये है की मै आजकल किसी को डेट कर रही हूँ
- (बोर) एक के साथ दस को कर मुझे कोई प्रोब्लम नहीं मुझे तो सिर्फ एक बार तेरे साथ सोना है

(लंबी चुप्पी)

- (फिर से दार्शनिक) देख सुन और समझ...दुनिया काला और सफ़ेद नहीं, तुझे मेडिटेशन करना चाहिए इससे दिमाग शांत रहता है और मुझे किसी ऐसे लड़की कि कहानी सुना जो खँडहर कि शबाना आज़मी ना हो बल्कि मकबूल कि तब्बू हो..
- (साला हरामी) वाह लाली... खूब समझ रहा हूँ तेरी चालाकी, पर पहले मैंने तुझसे झूठ बोला था मैंने तब्बू के साथ भी सोने के बारे में कल्पना कि है...
- ऐसा है कि तू भांड में जा, मैं जा रही हूँ.
- अबे बैठ तो सही और सोच कि आखिर बाकी कि आठ रानियाँ कैसे जीती रहीं..
- पत्थरों के दिमाग नहीं होता सोचने के लिए
- इसीलिए तो...
- इसीलिए तो तू पागल है और मै जा रही हूँ
- जाने वाला तो कब का जा चुका है उसका बदला मुझसे क्यूँ
- तू सिर्फ उस एक को जानता है और भी बहुत से हैं
- हे भगवान कब असली लोकतंत्र आएगा
- हा हा... अगर ऐसी ही बकवास कहानियां लिखता रहा तो कभी नहीं, और मुझे सचमुच ही अब जाना है
- हम्म...अच्छा जी ठीक है फिर 

इस बार वो सचमुच उठकर जाने लगी हालांकि मैं उसे रोककर और भी बहुत कुछ बताना चाहता था जैसे की ये कि मुक्तिबोध कैसे मरे और मेरी मकान मालकिन कुतिया है और वान गॉग कितना बड़ा बेवकूफ था और आलसी होना कितना मजेदार चीज़ है और मैं डार्क नाईट का जोकर जैसा हो जाना चाहता हूँ, और मोहनदास पढ़कर मैं डरके मारे रोने लगा था और मैं सिर्फ बकवास करता हूँ और ये सब कितना बोरिंग है जबकि कहानी में साला राजा दसवीं बीवी भी ले आया था....

खैर... रिक्शा स्टैंड तक हम साथ गए और मैंने लड़की को रिक्शे में बिठाया और उसे जाते हुए देखता रहा ये सोचते हुए कि आखिर रानी के पेट में पत्थर आया कहाँ से, कौन था वो दुसरा आदमी जिसने रानी के पेट में पत्थर छोड़ा जिससे रानी का क़त्ल होना था

मैंने बहुत तरह से सोचा पर कहानी का अधूरा रहना ही कहानी थी इसलिए भी उस लड़की के साथ नहीं सो पाने का मुझे इतना भी अफ़सोस नहीं जितना इस बात का है कि उस दिन बेकार ही दाढ़ी मूँछों और रिक्शे और सिगरेट पर फ़ालतू पैसे खर्च हो गए थे आखिर वो घोर गरीबी के दिन थे
( झूठा )
तो मैंने कौन सी कसम खाई है सच बोलने, लिखने की


 









गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

बुकोवस्की के लिए

























मेरे दिमाग में
शेर,सियार,बन्दर,सांप,बिच्छू,गिद्ध,कुत्ता,गिरगिट,सूअर 
छिपकली और छिपकली और चींटियाँ बहुत सारी चींटियाँ

मेरे दिल में
एक चिड़िया, नीले पंखों वाली चिड़िया

चौबीसों घंटे लड़ते हैं ये आपस में
दिल और दिमाग

एक बिचारी चिड़िया का मुकाबला
इतने सारे हरामियों के साथ

और हैरानी ये
कि अक्सर ही जीतती चिड़िया है

किसी दिन दिल से बाहर निकाल
इस चिड़िया का गला मुरकेटना है मुझे.

इसे मेरा रिज़्यूम समझें

                                     Artist - Rajkumar Sahni





















समय में कोई खराबी नहीं है  
और दुनिया के सारे पेंच कसे हुए हैं
जबकि मै कोई इंजीनियर होने कि बजाय
एक तीस साल का शराबी और गंजेड़ी हूँ
जिसके पास कुल जमा
डेढ़ दो सौ अधूरी कवितायेँ
चौबीस पच्चीस अनलिखी कहानियां
और अपनी पूरी ढीठता के साथ
बहुत सारी विनम्रता विरासत में मिली हुई
और तीन रंडियों के साथ सोने का अनुभव है
हालांकि मेरे मित्र ये भी कहते हैं
कि मुझमे एक अच्छा फिल्ममेकर और चित्रकार होने के
सारे गुण मौजूद हैं
(और उनकी इस बात पर मै यकीन करता हूँ)
आप चाहें तो इसे कविता कि तरह भी पढ़ सकते हैं
पर इतने से अगर कहीं काम मिलता हो
तो इसे मेरा रिज़्यूम समझें.

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

दीवार पर सोयी छिपकली

                       Artist - Rajkumar Sahni






















मै इतना खाली था
कि अचानक से भर गया
एक बड़े घास के मैदान से
उसमे घास चरती गाएँ थीं
खेलते हुए हुड़दंगी बच्चे थे
मैदान को घेरे हुए, हरहराते पेड़ थे
नीली पारदर्शी हवा
और एक लड़की
जो दिखती हुई सी ओझल थी
मै उसका चेहरा
कुँए कि तरह झाँकना चाहता था
इस कोशिश में
मैंने मैदान में कूदना चाहा
और झर गया.

फिर से एक कमरा था   
एक बिस्तर
और मेरे साथ
दीवार पर सोयी छिपकली. 

सोमवार, 1 अप्रैल 2013

नीम का पेड़ मेरा घर है, जिससे दिन भर पत्ते झरते हैं



                          Artist - Rohit Dalai






















एक छोटा सा दुःख
आंसू का एक कतरा
पीपल का पीला पत्ता
आकांक्षा का नीला आकाश.

देर से घर लौटे
थोड़े नशे में पिता
और उनका लाड़
फूली सिंकी हुई रोटियां
गोरसी का ताप
ब्याही बड़ी दीदी कि बात
घर का सबसे प्यारा कोना
मन का.

भाई से झगड़े
कंचे के खेल में
कुहनी और घुटने छीले.

चिमनी कि रौशनी
सफ़ेद रजाई
सफ़ेद दिन
गाँव से बाहर
घर के भीतर
मन के भीतर.

दिन कि थकान
शहर कि थकान
मन कि थकान.

एक छोटा सा सुख
छोटी सी मुस्कान
थोड़े से गेंहू कि चमक
घास का एक तिनका
किसी लड़की के लिए
पहली बार उमड़ी
प्यारी सी
चाहना
थाहना
मन को.

पाव भर दूध का लोटा
भूत का धोखा
आंट पर
रात में
खाट पर
मन में
दिन आकाश हो गया
रात पहाड़
सूरज गोरसी  
और नीम का पेड़ घर
जिससे
दिन भर पत्ते झरते हैं.

सबसे सुनसान दोपहर में
सबसे सुनसान रेलवे स्टेशन
मेरे गाँव का.

सबसे ज़्यादा
परसा के पेड़
महुवा के फूल
बटुरा, तीवरा, चना वाला खेत
कम हो गया
ग़म हो गया
गाँव जाना भी कम हो गया.

पर भी गाँव
मतलब छाँव
अगर में
मगर में  
मन में
शहर में.

महत्वाकांक्षा का पीला पत्ता
नशे में शहर
फूली सिंकी हुई
शहर कि सड़कें.

घास का एक तिनका
झूठ कि बड़ी सी नाव
चाहना
वक्षों से जाँघों तक का सफर
नज़र
मगर
भूख
भूत
चारों तरफ भूत
न धोखा
न झूठ
सिर्फ भूत
आईने में भी भूत.

नीम का पेड़ मेरा घर है
जिससे दिन भर पत्ते झरते हैं
और सड़क किनारे रोज़
कूड़े का ढेर इकठ्ठा हो जाता है.