मै अपने बारे में सोचने लगता हूँ
‘तुम अभी क्या कर रही होगी’
की सोच
‘मै अभी क्या करूँ’
की धुन पर टूटता है
तुम नहीं होकर कैनवास में बदल जाती हो
और ‘मै हूँ’
कहते हुए रंग साकार होने लगते हैं
अक्सर ही तुम पर लिखूं
सोचते हुए
मै तुम्हे भूल जाता हूँ
और लिखता हूँ
धूप, नदी और जंगल
और उदासी.
कई बार तुम्हे सोचते हुए
मै बहुत दूर तक निकल जाता हूँ
कुरुवार ,नगोई, और बिटकुली तक घूम आता हूँ
अजीब है ये
की तुम हो और नहीं हो के बीच
ढेर सारे लम्पट से लगते दुःख हैं
और डब-डब सी रातें हैं
तुम हो और नहीं हो के बीच
‘मै’ है फैला हुआ
नींद से भरपूर
नीले जंगल की तरह
सरई ,सागौन और महुआ के पेड़ों से लकदक
महकता ,गमकता
और सांय-सांय करता हुआ.
कुरुवार,नगोई,बिटकुली – मेरे गांव के आस पास के गाँवों के नाम
डर लगता था किसी का होने मै आज मैं जहाँ का हो गया हूँ
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