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हुसैन बाबा
सच सच बताइए
यही बात है न....
कि कंही एक कच्ची सड़क है
बहुत उबड़ खाबड़
और लंबी भी
जंहा आप इतने बरसों से चल रहे थे
वो भी नंगे पाँव
ज़रूर थक गए होंगे
तभी तो...
ये वही सड़क है न
जो आगे जाकर पक्के जामुन टपकाती है
दोनों तरफ खेतों कि लंबी कतारें
बीच बीच में आपके सुस्ताने के लिए
कड़क चाय कि गुमटियां
आपने ज़रूर इसी सड़क पर से देखा होगा
खेत कि मेढों पर से ओझल होती हुई
गजगामिनी को
और इसी सड़क पर तो आप मिले थे मदर टेरेसा से
जब वो अपने रोगियों के साथ टहलने आई थीं यंहा
क्या आपको इस सड़क का पता मुक्तिबोध ने दिया था
या लालटेन कि रौशनी में
छतरियों कि मरम्मत करते आपके उन बूढ़े बाबा ने
आपने अपनी ‘ज़मीन’ बुनने के लिए
यंही से रंग उठाए थे न
बाप रे, कितना बोलते हैं आपके ये रंग
मै भी कभी कभी आपके इन बोलते रंगों से
अपने लिए नींद चुन लेता हूँ
आपकी चिंता यही थी न
कि शहर में सींगे उछालते वो बैल कंही इस सड़क को रौंदते हुए
इसका बालात्कार न कर दें
ऐसी कोशिशें तो सदियों से हो रही हैं
फिर भी ये सड़क महुए के फूलों से लदा रहता है
जामुन, सीताफल, अमरुद या आम हो
आज भी बच्चे इन्हें खरीदकर नहीं
बल्कि यंही से चुराकर खाते हैं
इसलिए आप परेशान न हों
आप ही देखो न
आपको इस सड़क से बेदखल करने कि कितनी साजिशें हुईं
और ऐसी अफवाहें तो मैंने भी सुनी थी
कि आपको यंह से तडीपार करके
किसी क्रांकीट के जंगल में भेज दिया गया है
पर मै जानता हूँ कि ये सब बस कोरी अफवाहें हैं
आप तो इसी सड़क पर चलते चलते अचानक से
यंहा कि हवा में घुल गए होंगे
आखिर जून का महीना है
आपको लगा होगा
कि ये हवा सख्त होकर बेकार में ही इन पेड़ों को
सता रही है , झुलसा रही है
चलो मै ही इस हवा में घुलकर इन पेड़ों को
थोड़ी ठंडक बख्शुं
सच सच बताइए .. यही बात है न..
‘ज़मीन’ हुसैन साहब कि एक चर्चित कृति
बहुत सुदर कविता......
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