की रोटी पर घी की तरह चुपड़कर खा लो
और हवा
पुराने छूट गए शहरों को याद करने जैसी
मै एकटक उसे देखता हूँ
मुनगे की पतली टहनियों पर कलाबाजी करते
मै उसे देखता हूँ
वो अपने में शायद
कुछ बडबडाती हुई पंख झटकती है
और पीले टिकलियों की तरह कई पत्ते
हवा में तिरछे होकर चुपचाप झरते हैं
वो मुझसे अनजान है
मै खुश हो जाता हूँ
(या खुश होने का नाटक करता हूँ)
मै उसे देखता हूँ
और उदास हो जाता हूँ
(या उदास हो जाने का नाटक करता हूँ)
मै उसे देखता हूँ
उड़कर दूर जाते हुए.
kya baat hai shahu g maja aa gaya
जवाब देंहटाएंसुंदर.......
जवाब देंहटाएं