क्या दुनिया तुम्हारे पास आकर कहती है , देखो मै हूँ.
- रमण महर्षि
रात में नींद नहीं आती
और मै पहाड़ों को याद भी नहीं कर रहा होता
फिर लिखते हुए अचानक
शब्दों के बीच कंही पहाड़ चमक जाता है
और तब सचमुच
मै पहाड़ों को याद नहीं कर रहा होता.
२.
कभी कभी मन करता है
किसी बहुत ऊंचे पहाड़ पर चढ़ जाऊं
चीखूँ चिल्लाऊं
वरना तो यंहां सभी गूंगे और बहरे हैं
या मेरी तरह नपुंसक
जो किसी पहाड़ पर चढ़कर चीखना चाहते हैं.
३.
मैंने लिखने के लिए तो लिख दिया पहाड़
पर जब मुह खोला कहने के लिए पहाड़
तो लगा नहीं की कह रहा हूँ पहाड़
जबकि कंहूँ पहाड़
तो उसका मतलब सिर्फ पहाड़ होना चाहिए.
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