Artist- Raj Kumar Sahni |
किसी के कान में
फुसफुसाकर कहे गए शब्द हों
या अधूरी नींद की बुदबुदाहट
भीड़ में टहलती चुप्पियाँ हों
या दीवारों पर सर पटकते अवसाद
कटे- फिटे
थके- हारे
खून और मवाद में लिथड़े शब्द ही क्यूँ न हों
कविता सबको पनाह देती है
“और अगर आखिरी बार का रोना याद हो
तो ये दिन इतने भी बुरे नहीं”- कहकर
कविता मुस्कुराती है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें