Artist- Uday Singh |
१.
कभी कभी मै तुम्हे इस तरह देखता हूँ
की जैसे पहली बार देख रहा हूँ
इस देखने में पहले जो देखा था
का भूलना भी शामिल होता है
और जब मैंने तुम्हे पहली बार देखा था
तो वो इस तरह का देखना था
की जैसे नहीं देखा हो.
२.
कोई कोई दिन होता है
जब कोई नहीं होता
ये कोई कोई दिन
बहुत सारे दिनों के बीच का
कोई एक दिन होता है
इस कोई एक दिन में
बहुत सारे दिनों जैसा ही
सब कुछ होता है
हाँ बस मै नहीं होता
और तुम भी नहीं होती
इस कोई एक दिन में सिर्फ हम होते हैं
कुछ इस तरह
जैसे कोई नहीं है.
३.
फिर कभी कभी
मै तुम्हे इस तरह भी सोचता हूँ
की जैसे नहीं सोच रहा हूँ
अक्सर नहीं सोच रहा हूँ की सोच
मेरी शामें होती हैं
और जब मै तुम्हे सोच रहा होता हूँ
तो कुछ इस तरह
मानो नींद में हूँ
दरअसल
नींद में हूँ की सोच
सितम्बर की धूप है
जो आजकल बेशर्मों की तरह
दिन भर गुनगुनाती रहती है.
अच्छी कविता.....
जवाब देंहटाएंbahut badhiya sahu bhai
जवाब देंहटाएंखड़ा हूँ अड़ा हूँ
जवाब देंहटाएंइस बात से नही डरा हूँ
ताकतें हुए इस सृष्टि को
प्रकृति की संरचना को
जिसने ओढा है चादर
हरियाली की
उसपे ही बड़ा हुआँ हूँ
खड़ा हूँ अड़ा हूँ
इस बात से नही डरा हूँ
दुर्गेश साहू
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